जवाहरबाग हिंसा मामले में हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को लगाई कड़ी फटकार

Edited By ,Updated: 18 Jul, 2016 06:25 PM

jwahrbag violence up government imposed stiff rebuke in court

जवाहरबाग हिंसा के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने यूपी सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए दो हफ्ते की दी मोहलत दी है।

जवाहरबाग हिंसा के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने यूपी सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए दो हफ्ते की दी मोहलत दी है। 
 
इलाहाबाद(सैयद आकिब रजा): इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आज उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि मथुरा के जवाहर बाग में दो साल से अधिक समय तक अतिक्रमणकारियों का कब्जा क्यों रहने दिया गया जबकि 2014 में इस सार्वजनिक पार्क का इस्तेमाल केवल दो दिन तक प्रदर्शन के लिए करने की अनुमति दी गयी थी। जवाहर बाग मामले में सीबीआई जांच की मांग वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति रवींद्रनाथ कक्कड़ की खंडपीठ ने वहां अतिक्रमण और उससे संबंधित कार्रवाई को लेकर मथुरा के जिला प्रशासन और राज्य सरकार के बीच हुए संवाद का ब्योरा भी मांगा।
 
घटना के सिलसिले में सीबीआई जांच की मांग पर जोर देते हुए मामले के एक याचिकाकर्ता भाजपा नेता और उच्चतम न्यायालय के वकील अश्विनी उपाध्याय ने अदालत में आरोप लगाया कि प्रदर्शनकारियों के स्वयंभू नेता रामवृक्ष यादव को उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी का अनुचित समर्थन था। यादव के समर्थकों ने जवाहर बाग पर लंबे समय से कजा कर रखा था जिसे खाली कराने के लिए दो जून को कार्रवाई की गयी। 
 
 याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया, ‘‘राज्य सरकार ने रामवृक्ष यादव के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जबकि जवाहर बाग पर कजे की अवधि के दौरान उसके और उसके अनुयायियों के खिलाफ 16 प्राथमिकियां दर्ज की गयी थीं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘उसने 2014 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी के एक शीर्ष नेता के लिए व्यापक प्रचार किया था और उसके एवज में राज्य सरकार जाहिर तौर पर उसे विशालकाय सार्वजनिक पार्क सौंपने की कोशिश कर रही थी।’’ 
 
अदालत ने राज्य सरकार से जवाब देने को कहा और अगली सुनवाई के लिए एक अगस्त की तारीख तय की। उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद गत दो जून को जवाहर बाग को खाली कराने की कार्रवाई में अतिक्रमणकारियों और पुलिस के बीच संघर्ष हुआ जिसमें दो पुलिस अधिकारियों समेत 29 लोगों की मौत हो गयी। उत्तर प्रदेश सरकार ने मामले की जांच के लिए उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक जांच आयोग का गठन किया। 

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