बड़ा खुलासा: योगीराज में राजधानी के किसी थाने में नहीं कोई मुसलमान थानेदार

Edited By Anil Kapoor,Updated: 20 May, 2018 03:24 PM

in yogiraj any of the capital in police station no muslim sub inspector

आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में लगभग 19 फीसदी आबादी मुसलामानों की है, पर राजधानी लखनऊ के 43 थानों में एक भी मुसलमान थानेदार तैनात नहीं किया गया है। यानी कि लखनऊ के थानों में शत-प्रतिशत हिन्दू थानेदार तैनात हैं।

लखनऊ: आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में लगभग 19 फीसदी आबादी मुसलामानों की है, पर राजधानी लखनऊ के 43 थानों में एक भी मुसलमान थानेदार तैनात नहीं किया गया है। यानी कि लखनऊ के थानों में शत-प्रतिशत हिन्दू थानेदार तैनात हैं। यूपी की 38 फीसदी आबादी ओबीसी यानी कि अन्य पिछड़ा वर्ग से है लेकिन थानों में उनका प्रतिनिधित्व मात्र 11.5 फीसदी तक ही सीमित है।
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इसी प्रकार कुल आबादी का 21 फीसदी हिस्सा अनुसूचित जाति का होने पर भी इस सूबे की राजधानी में थानेदारों की नुमाइंदगी मात्र 11.5 फीसदी पर ही सिमट कर रह गई है। अलबत्ता कुल आबादी के 22 फीसदी पर सिमटे अगड़े सूबे की राजधानी के 77 फीसदी थानों पर काबिज हैं। चौंकाने वाला यह खुलासा राजधानी के आरटीआई कंसल्टैंट संजय शर्मा की एक आरटीआई पर लखनऊ के अपर पुलिस अधीक्षक विधानसभा और जनसूचना अधिकारी द्वारा दिए जबाब से हुआ है।

पारदर्शिता, जवाबदेही और मानवाधिकार क्रांति के लिए एक पहल तहरीर नामक पंजीकृत संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय शर्मा को दी गई सूचना से खुलासा हुआ है कि लखनऊ के 43 थानों में से 18 में ब्राह्मण, 12 में क्षत्रिय, 2 में कायस्थ, 1 में वैश्य, 2 में कुर्मी, 1 में मोराई, 1 में काछी, 1 में ओबीसी, 1 में धोबी, 1 में जाटव, 1 में खटिक और 2 में अनुसूचित जाति के थानेदार तैनात हैं।

मानवाधिकार कार्यकर्ता संजय शर्मा का कहना है कि सरकारों से उम्मीद तो यह की जाती है कि वे जाति, वर्ग, धर्म से ऊपर उठकर काम करेंगी पर राज्य के पुलिस थानों में बसपा की सरकारों में अनुसूचित जाति का दबदबा कायम रहता है। सपा में यादवों का तो भाजपा में ब्राह्मण-ठाकुरों का दबदबा कायम होने की परंपरा सी कायम हो गई है जो लोकतंत्र के लिए घातक है। संजय के अनुसार सरकारों की ऐसी पक्षपाती कार्यप्रणाली की वजह से लोकसेवकों को न चाहते हुए भी राजनीतिक निष्ठाएं नियत करनी पड़ती हैं और उनकी निष्पक्षता भी प्रभावित होती है जिसके चलते वे कानून व्यवस्था पर प्रभावी नियंत्रण नहीं रख पाते हैं।

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