Edited By Ruby,Updated: 26 Mar, 2019 06:21 PM
लखनऊः आजमगढ़ लोकसभा सीट से सांसद अपने पिता मुलायम सिंह यादव की विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश में जुटे समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव की निगाहें अपनी उम्मीदवारी के बहाने समूचे पूर्वां
लखनऊः आजमगढ़ लोकसभा सीट से सांसद अपने पिता मुलायम सिंह यादव की विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश में जुटे समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव की निगाहें अपनी उम्मीदवारी के बहाने समूचे पूर्वांचल में ‘‘लाठी, हाथी और 786’’ यानी यादव, दलित और मुस्लिम मतदाताओं को गोलबंद करने पर लगी हैं। अखिलेश इस बार अपने पिता मुलायम की सीट आजमगढ़ से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। मुलायम को इस बार मैनपुरी से सपा उम्मीदवार बनाया गया है। सपा को करीब से जानने वाले लोगों का मानना है कि आजमगढ़ से चुनाव लड़ने के पीछे अखिलेश की मंशा उस पूरे पूर्वांचल पर असर डालने की है, जहां वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने वर्चस्व कायम कर लिया था।
सपा की आजमगढ़ जिला इकाई के अध्यक्ष हवलदार यादव ने बताया‘‘सपा मुखिया अखिलेश यादव के चुनाव लड़ने से पूर्वांचल में लाठी, हाथी और 786 के मतदाताओं को एकजुट करने में मदद मिलेगी। चूंकि आजमगढ़ गोरखपुर और वाराणसी के बीच स्थित है लिहाजा इस सीट पर सपा प्रमुख के चुनाव लड़ने से पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा प्रत्याशियों की जीत की सम्भावनाएं काफी बढ़ जाएंगी।‘‘ उन्होंने कहा कि अखिलेश के मुख्यमंत्रित्व काल में मुलायम के संसदीय प्रतिनिधित्व वाले आजमगढ़ में विकास की बयार बही। लोग इस बात को अच्छी तरह जानते भी हैं।
मालूम हो कि सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव आजमगढ़ के साथ-साथ मैनपुरी से भी लड़ा था। पूर्वांचल में मौजूदगी बनाये रखने के लिए उन्होंने मैनपुरी सीट से इस्तीफा दे दिया था। आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र में यादव, जाटव और मुस्लिम मतदाताओं का बाहुल्य है। ये तीनों बिरादरी मिलकर सपा-बसपा गठबंधन के मूल वोट बैंक का निर्माण करती रही हैं। आजमगढ़ सीट से वर्ष 1996 से अब तक केवल यादव या मुसलमान ही सांसद बनते रहे हैं। आजमगढ़ से सपा और बसपा के कोर मतदाताओं के प्रतिशत को अगर जोड़ लें तो यह 63 फीसद आता है, जो किसी भी प्रत्याशी की नैया पार लगा सकता है।