लोगों के घरों में रोशनी पहुंचाने वालों के घर अंधेरा

Edited By ,Updated: 09 Nov, 2015 04:20 PM

in the light of the many dark homes house

दीपावली पर लोगों के घरों के आंगन को रोशनी देने वाले कुम्हारों के आंगन आज खुद के घरों को रोशन करने के लिये मोहताज हैं।

कानपुर देहात(अंबरीश त्रिपाठी): दीपावली पर लोगों के घरों के आंगन को रोशनी देने वाले कुम्हारों के आंगन आज खुद के घरों को रोशन करने के लिये मोहताज हैं। वजह आज का यह आधुनिक युग है। दिवाली जो कि दीपों का त्योहार है, उसमें दीपों की जगह मोमबत्तियों और चाइनीज झालरों ने ले ली। जिसकी वजह से आज रोशनी और खुशी के इस त्योहार पर कुम्हारों के घर आंगन में दीपक की रोशनी होना मुश्किल हो रहा है। चाइनीज झालरों और लाइटों के चलते कुम्हार की चाक नहीं घूम रही है और चाक न घूमने के कारण उनकी जिन्दगी भी मानों थम सी गयी है।
 
सरकारें आती जाती रहीं, लेकिन इनका भला किसी ने नहीं किया। बस कुछ विशेष मौकों पर इनके गमों को याद करने के बाद लोग इन्हें भूल जाते हंै। जहां एक ओर पूरा देश रोशनी के त्योहार पर खुशियां मानाएगा और मिठाई खाएगा और बच्चे पटाखे जलाएंगे लेकिन इन कुम्हारों के घर न तो रोशनी होगी और ना ही इनके घरो में पटाखो की गूंज।
 
दीपावली से महीनों पहले कुम्हारों की चाक जो दिन रात घूमा करती थी वो मानो थम सी गयी है। उनके घरों की हालत बद से बदतर हो गयी है। कभी पूरा घर दिन रात मेहनत करके मिट्टी के दिये बना कर अपने परिवार को पाला पोसा करता था लेकिन आज उन घरों में सन्नाटा पसरा है। कुम्हारों को इस सीजन में पल भर के लिए बैठने की फुर्सत नहीं मिलती थी, लेकिन वह आज सारा सारा दिन खाली बैठा रहता है। दीपकों का चलन मानों खत्म सा हो गया है जिसके चलते कुम्हार बेरोजगार हो गया है। न तो अब उसके पास खाने को है और ना ही बच्चो को पढ़ाने के लिये।
 
क्या कहते हैं कुम्हार-
कुम्हारों की मानो तो उनका कहना है कि ये काम उनके बुजुर्गों का काम है। आज कुल्हढ की जगह प्लास्टिक के गिलासो ने ली है। दियों 
की जगह मोमबत्ती और झालरों का चलन हो गया। दिवाली तो बस नाम की ही रह गयी है। मिट्टी के दिये से पूजा होती थी, लेकिन अब तो  सब खत्म सा हो गया है। सरकार से कोई लाभ नहीं मिल रहा है, सिर्फ वादे करती है और करती कुछ भी नहीं। प्लास्टिक के उपकरण और चाइनीज झालरो का चलन कम होना चाहिये तभी हम कुम्हारो का भला हो पायेगा।

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