लॉकडाउन में आर्थिक मंदी से जूझ रहा नागरा जूती उद्योग, कारोबार को 50 लाख का नुकसान

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 10 Jun, 2020 05:35 PM

hamirpur nagra jute industry is struggling with economic recession

जनपद से 15 किमी दूर नेशनल हाई-वे- 34 पर भरुआ सुमेरपुर में जूती उद्योग की शुरुआत वर्ष 1952 में हुई थी। दो दर्जन से अधिक लोग इस उद्योग को पुश्तैनी कारोबार की तरह चलाते रहे हैं। मगर उनमें इस समय मायूसी देखी जा रही है। जूती उधोग कारोबारियों का कह...

हमीरपुरः जनपद से 15 किमी दूर नेशनल हाई-वे- 34 पर भरुआ सुमेरपुर में जूती उद्योग की शुरुआत वर्ष 1952 में हुई थी। दो दर्जन से अधिक लोग इस उद्योग को पुश्तैनी कारोबार की तरह चलाते रहे हैं। मगर उनमें इस समय मायूसी देखी जा रही है। जूती उधोग कारोबारियों का कहना है कि यदि जूती उद्योग के लिए अलग मार्किट खुलवाकर इससे जुड़े उद्यमियों को बैंक से आर्थिक मदद मिले तो अत्याधुनिक तरीके से जूती बनाई जा सकती है।

लॉकडाऊन में जनपद को एक उत्पाद एक जिला, कारोबार को लंबी चपत लगी है। पिछले 2 माह में इस कारोबार को 50 लाख से अधिक का नुकसान उठाना पड़ा है। नागरा जूती उद्योग की नौबत यहां तक आ गई है कि इस कारोबार से जुड़े कामगारों के समक्ष रोजी-रोटी के लाले पड़ने लगे हैं। बरसात के सीजन में इस उद्योग के पूरी तरह से ठप्प हो जाने की उम्मीद है ऐसे में ये कामगार अब पेट पालने के लिए दूसरे काम धंधे की तलाश में लग गए हैं।

कामगार की मानें तो सरकार 1 वर्ष बाद भी ऋण मुहैया नहीं करा सकी है। मौजूदा सरकार श्रमिकों के उत्पाद के नाम पर भद्दा मजाक कर रही है। इतना ही नहीं श्रम विभाग इनको कामगार भी नहीं मानता है यही वजह है कि सरकार की श्रमिक पेंशन योजना से भी ये लोग वंचित हैं। हाथों से तैयार होने वाली नागरा जूती जनपद के अलावा बुंदेलखंड के छतरपुर, सतना, चित्रकूट, झांसी, बांदा, महोबा, जालौन, कानपुर, फतेहपुर आदि जनपदों में बिकती है।

कारोबार चन्द्रपाल ने बताया कि मार्च से लेकर जून तक कारोबार का सीजन होता है। इसी सीजन में दुकानदारों को लाभ या नुक्सान का आकलन हो पाता है, लेकि लॉकडाऊन के कारण 500 जोड़ी तैयार जूती डम्प हो गई है। अब इसके बिकने के आसार नहीं हैं। पूंजी फंस जाने से दूसरा कारोबार भी वह नहीं कर पा रहे हैं।

विजय कुमार ने बताया कि 2 लाख से अधिक का नुक्सान लॉकडाऊन में हुआ है। सरकार ने मार्च 19 में ऋण मुहैया कराने के लिए 15 लोगों के फार्म भरवाए थे। जनवरी 2020 में स्वीकृति पत्र थमा दिया गया परंतु ऋण आज तक नहीं दिया गया। इससे सरकार की किसी योजना का लाभ आज तक नहीं मिला है। ऐसे बहुत दुकानदार हैं जिनको लाखों का नुक्सान हुआ है।

श्रम विभाग का कहना है कि यह श्रमिक नहीं बल्कि व्यापारी हैं। दुकानें खोलकर यह कारोबार कर रहे हैं इसलिए इनको श्रमिक नहीं माना जाता है। यह पट्टी दुकानदार की श्रेणी में भी नहीं आते हैं। क्योंकि उन्होंने बकायदा दुकानें खोल रखी है। इस वजह से इनको पट्टी दुकानदारों की योजनाओ का भी लाभ नहीं मिल पा रहा है।
 

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