इंजीनियर यादव सिंह काे बड़ा झटकाः हाईकाेर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका खारिज

Edited By Ramkesh,Updated: 10 May, 2020 07:36 PM

engineer yadav singh s big shock high court dismisses petition in lucknow bench

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने सीबीआई द्वारा मामले में अदालत के न्यायाधिकार क्षेत्र का सवाल उठाए जाने के बाद नोएडा के पूर्व मुख्य इंजीनियर यादव ..

प्रयागराजः इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने सीबीआई द्वारा मामले में अदालत के न्यायाधिकार क्षेत्र का सवाल उठाए जाने के बाद नोएडा के पूर्व मुख्य इंजीनियर यादव सिंह को रिहा करने की अनुरोध करने वाली याचिका को ‘‘ वापस लिया गया’’ मानकर खारिज कर दिया। सिंह नोएडा के पूर्व मुख्य रखरखाव इंजीनियर थे और सीबीआई द्वारा भ्रष्टाचार के तीसरे मामले में गिरफ्तार करने के बाद 11 फरवरी 2020 से न्यायिक हिरासत में हैं। सीबीआई ने 17 जनवरी 2018 को उनके खिलाफ मामला दर्ज किया था।

सीबीआई की ओर से दर्ज हालिया प्राथमिकी में आरोप है कि यादव सिंह ने नोएडा में आकर्षक ठेके अपने दोस्तों और सहयोगियों की कंपनियों को दिये। एजेंसी ने पहले भी भ्रष्टाचार के दो मामले उनके खिलाफ दर्ज किए हैं।ये मामले अपने पद का दुरुपयोग कर नोएडा में करीब एक हजार करोड़ रुपये के ठेके अपनी पसंदीदा कंपनियों को देने और गैर कानूनी तरीके से 23 करोड़ रुपये की संपत्ति जमा करने के सिलसिले में है। एजेंसी ने 62 वर्षीय सिंह को गिरफ्तार करने के बाद गाजियाबाद की विशेष अदालत में पेश किया था जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। उनकी जमानत की अर्जी विशेष अदालत ने 17 अप्रैल 2020 को खारिज कर दी थी।

सिंह के बेटे सनी ने इसके बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ का रुख किया और बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका दायर की। सनी ने याचिका में आरोप लगाया कि यादव सिंह को अवैध तरीके से कैद किया गया है क्योंकि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-167 (2) के तहत केवल 60 दिनों तक न्यायिक हिरासत में रखा जा सकता है और यह मियाद 10 अप्रैल 2020 को समाप्त हो चुकी है। उल्लेखनीय है कि बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट याचिका अवैध रूप से कैद में रखे व्यक्ति की सुरक्षित रिहाई के लिए सक्षम अदालत के समक्ष दाखिल की जाती है।

सनी ने दावा किया कि यादव सिंह पर जो मामले दर्ज हैं उनमें अधिकतम सात साल कैद की सजा का प्रावधान है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने 23 मार्च के अपने आदेश में राज्यों को सुझाव दिया कि कोरोना वायरस की महामारी के चलते इस अवधि की सजा के प्रवाधान वाले मामलों में बंद विचाराधीन कैदियों को रिहा करने पर विचार करें।

इस याचिका पर न्यायमूर्ति करुनेश सिंह पवार और न्यायमूर्ति पंकज कुमार जायसवाल की पीठ ने हाल में वीडियो कांफ्रेंस के जरिये सुनवाई की, जहां पर सीबीआई ने याचिकाकर्ता के तर्कों का मजबूती से जवाब दिया। सीबीआई ने कहा कि गाजियाबाद की विशेष अदालत इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधिकार क्षेत्र में आती है। ऐसे में इस मामले को वहीं सुना जाना चाहिए, न कि उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के समक्ष।एजेंसी ने कहा कि यादव सिंह को अवैध तरीके से हिरासत में रखने का सवाल ही नहीं है क्योंकि उन्हें विशेष अदालत के समक्ष पेश किया गया और वहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा गया। सीबीआई ने कहा कि आरोपी उसकी हिरासत में नहीं है।

सीबीआई के तर्कों को सुनने के बाद पीठ ने इस बात का संज्ञान लिया कि सीबीआई की ओर से दाखिल जवाबी हलफनामे में इस अदालत के न्यायाधिकार क्षेत्र के संबंध में आपत्ति जताई गई है। अदालत ने कहा, ‘‘चूंकि, सीबीआई के तर्कों के प्रत्युत्तर में विस्तृत हलफनामा दाखिल किया गया है लेकिन बहस के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने बहुत साफगोई से इस रिट याचिका को नये सिरे से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने की स्वतंत्रता के साथ वापस लेने का अनुरोध किया है।’’ पीठ ने कहा कि इसलिये याचिका वापस लिया गया मानकर खारिज की जाती है।

उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर प्रारंभिक जांच करने के बाद केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने 17 जनवरी 2018 को यादव सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया था। एजेंसी पहले ही भ्रष्टाचार के मामले में दो मामले दर्ज कर चुकी थी। जांच के दौरान सीबीआई ने पाया कि यादव सिंह ने नोएडा में बड़े ठेके देने में कथित तौर पर अपने दोस्तों, सहयोगियों और परिवार के सदस्यों की पांच कंपनियों को फायदा पहुंचाया।

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!