Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 10 Apr, 2020 04:53 PM
दूसरों की मदद वही कर सकता है, जो दर्द के एहसास को समझता है। ऐसी ही एक अनुकरणीय उदाहरण फर्रुखाबाद में देखने को मिली है। जहां लाॅकडाउन में जरूरतमंदों की पीड़ा का एहसास कर नेत्रहीन प्रियांक सक्सेना उनकी मदद के लिए आगे आए है। वह गरीब व अस...
फर्रुखाबादः दूसरों की मदद वही कर सकता है, जो दर्द के एहसास को समझता है। ऐसी ही एक अनुकरणीय उदाहरण फर्रुखाबाद में देखने को मिली है। जहां लाॅकडाउन में जरूरतमंदों की पीड़ा का एहसास कर नेत्रहीन प्रियांक सक्सेना उनकी मदद के लिए आगे आए है। वह गरीब व असहाय लोगों को रोजाना भोजन बांट रहे हैं। भोजन का सारा खर्च उठाने वाले प्रियांक की मदद उनके रिश्तेदार व पड़ोसी भी कर रहे है।अब ऐसे समय में जरूरतमंदों की सेवा कर लोगों के बीच प्रेरणादायक उदाहरण पेश कर रहे हैं।
कोरोना महामारी को लेकर उत्पन्न संकट में वैसे तो मददगारों की लंबी फौज खड़ी हो गई है। कोई भोजन तो कोई खाद्यान्न लेकर पहुंचा रहे हैं। स्थिति यह है कि मददगारों की दरियादिली से हजारों जरूरतमंदों को भोजन पानी मिल रहा है, लेकिन इन सबके बीच रेलवे रोड निवासी 30 वर्षीय प्रियांक सक्सेना उर्फ चिंटू नेत्रहीन होने के बावजूद अपने सहयोगी के साथ मिलकर हर जरूरतमंद लोगों को भोजन उपलब्ध करा रहे हैं।
प्रतिदिन बांटते 250 से 300 भोजन के पैकेट
एक कंपनी की एजेंसी चलाने वाले प्रियांक के दृष्टि बाधित होने के बावजूद हौसले बुलंद हैं। लॉकडाउन में कामकाज ठप होने से भुखमरी की कगार पर पहुंचे लोगों की पीड़ा का एहसास कर उन्होंने ऐसे लोगों की मदद करने की ठानी है। वह भोजनशाला की व्यवस्थाएं संभालते हैं। वे प्रतिदिन 250 से 300 लंच पैकेट की पैकिंग, उनकी गिनती,उन्हें लोगों को सौंपना तथा जरूरत पड़ने पर सामान उपलब्ध करवाना आदि कार्य बड़े आराम से और मन लगा कर कर रहे हैं। हालांकि उनके ताऊ अजीत सक्सेना व पड़ोसी भोजन बनवाने से लेकर उसे पैक कराने में सहयोग करते हैं। शुक्रवार को प्रियांक ने छोले-आलू की सब्जी व पूड़ी बनवाकर गरीबों में वितरित किया।
10 साल की उम्र में गई थी आंखों की रोशनी
प्रियांक सक्सेना बताते हैं कि दस साल की उम्र में क्रिकेट खेलते समय उनकी दाई आंख में गेंद लग गई, जिससे उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई। काफी इलाज करवाया, लेकिन कोई लाभ नहीं मिला। उनकी तीन बहनें हैं, जिनकी शादी हो चुकी है। वर्ष 2018 में मां पुष्पा देवी और 2019 में पिता श्याम सक्सेना की मृत्यु होने के बाद वह अकेले हुए, लेकिन बुलंद हौसलों के सहारे हिम्मत नहीं हारी।