जन्मदिन विशेषः इलाहाबाद में धूम-धाम से मनाई गई चंद्रशेखर आजाद की जयंती

Edited By Ruby,Updated: 23 Jul, 2018 02:35 PM

आज महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की जयंती है। आज ही के दिन उनका जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ था। आजाद को उनके 112वें जन्मदिन पर उनके शहीद स्थल इलाहाबाद के आजाद पार्क में याद कर धूमधाम से उनकी जयंती...

इलाहाबादः आज महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की जयंती है। आज ही के दिन उनका जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ था। आजाद को उनके 112वें जन्मदिन पर उनके शहीद स्थल इलाहाबाद के आजाद पार्क में याद कर धूमधाम से उनकी जयंती मनाई गई।

चंद्रशेखर आजाद की पुण्य तिथि व जयंती पर उन्हें याद कर श्रद्धांजलि देने के लिए बड़ी संख्या में लोग आए। जिला प्रशासन से एडीजी एस सावंत व अपर नगर आयुक्त ऋतू सुहास ने फूल माला चढ़ा कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। इस दौरान सावंत ने कहा कि चंद्रशेखर आजाद आज के युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं और उनके बलिदान को कोई भी भुला नहीं सकता।

बता दें कि इलाहबाद के इस आज़ाद पार्क में स्थानीय ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में लोग महान क्रन्तिकारी अमर शहीद को नमन करने के साथ प्रेरणा लेने आते हैं। 
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कौन थे चंद्रशेखर आजाद
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा नामक स्थान पर हुआ था। बेहद कम उम्र में चंद्रशेखर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। चंद्रशेखर आजाद 14 वर्ष की आयु में बनारस गए और वहां एक संस्कृत पाठशाला में पढ़ाई की। 1920 में आजाद गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़े। वे गिरफ्तार हुए और जज के समक्ष प्रस्तुत किए गए। जहां उन्होंने अपना नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वतंत्रता' और 'जेल' को उनका निवास बताया। आजाद को 15 कोड़ों की सजा दी गई थी।

इस वजह से अहिंसा को छोड़ कर उग्र हमलों के रास्ते को अपनाया
महात्मा गांधी ने 1922 में चौरी-चौरा कांड के बाद आंदोलन वापस ले लिया। इसके बाद आजाद ने अहिंसा छोड़ कर उग्र हमलों का रास्ता अपना लिया। आजाद रामप्रसाद बिस्मिल के क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (एचआरए) से जुड़े। यहां से उनकी जिंदगी बदल गई। उन्होंने सरकारी खजाने को लूट कर संगठन की क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन जुटाना शुरू कर दिया। उनका मानना था कि यह धन भारतीयों का ही है जिसे अंग्रेजों ने लूटा है। रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षड्यंत्र (1925) में सक्रिय भाग लिया था।
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मातृभूमि के लिए प्राणों की दे दी आहुति 
चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में सुखदेव और अपने एक अन्य और मित्र के साथ योजना बना रहे थे। अचानक अंग्रेज पुलिस ने उनपर हमला कर दिया। आजाद ने पुलिस पर गोलियां चलाईं जिसमें उनका एक अन्य साथी वहां से बचकर निकल गया। पुलिस की गोलियों से आजाद बुरी तरह घायल हो गए थे। वे सैकड़ों पुलिस वालों के सामने 20 मिनट तक लोहा लेते रहे. उन्होंने संकल्प लिया था कि वे न कभी पकड़े जाएंगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी।इसीलिए अपने संकल्प को पूरा करने के लिए अपनी पिस्तौल की आखिरी गोली खुद को मार ली और मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दे दी। 27 फरवरी 1931 को उन्होंने अंतिम सांस ली। 

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