सबरीमला मामले में न्यायालय जल्द निर्णय दे सकता है तो अयोध्या पर क्यों नहीं: रवि शंकर प्रसाद

Edited By Ruby,Updated: 25 Dec, 2018 10:42 AM

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केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने उच्चतम न्यायालय में अयोध्या के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह करने की अपील की है। इसके साथ ही कहा कि जब सबरीमला और समलैंगिकता के मामले में न्यायालय जल्द निर्णय दे...

लखनऊ: केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने उच्चतम न्यायालय में अयोध्या के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह करने की अपील की है। इसके साथ ही कहा कि जब सबरीमला और समलैंगिकता के मामले में न्यायालय जल्द निर्णय दे सकता है तो अयोध्या मामले पर क्यों नहीं,  राम जन्म भूमि मामला तो 70 सालों से अटका है।  

समारोह में उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एम.आर. शाह, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोविन्द माथुर और न्यायमूर्ति ए.आर. मसूदी भी मौजूद थे। प्रसाद ने कहा कि हम बाबर की इबादत क्यों करें..... बाबर की इबादत नहीं होनी चाहिए। उन्होंने संविधान की प्रति दिखाते हुए कहा कि इसमें राम चंद्र जी, कृष्ण जी और अकबर का भी जिक्र है, लेकिन बाबर का जिक्र नहीं है। यदि हिंदुस्तान में इस तरह की बातें कर दो तो अलग तरह का बखेड़ा खड़ा कर दिया जाता है।

उन्होंने कहा कि सरकार ने तीन तलाक विधेयक को सरल बनाया है। इसके साथ इसमें जमानत देने का प्रावधान किया जा रहा है लेकिन पीड़िता का बयान लेने के बाद ऐसा होगा। दुनिया के 22 इस्लामी देशों में तीन तलाक पहले ही प्रतिबंधित है। स्थिति यह है कि पाकिस्तानी में उलेमा भी इसी तरह के कानून की मांग कर रहे हैं। अधिवक्ता परिषद द्वारा जारी बयान के मुताबिक कानून मंत्री ने अन्य लोक सेवाओं की तरह भविष्य में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए भी ‘आल इण्डिया जूडिशियल सर्विसेज सिस्टम’ लाने की बात कही।

उन्होंने कहा कि वह इस बात की हिमायत करते हैं कि भविष्य की न्यायिक व्यवस्था में उच्च कोटि के न्यायमूर्तियों की ही नियुक्ति हो। प्रसाद ने कहा कि वर्ष 1950 से लेकर 1993 तक उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती थी, जबकि 1993 से कॉलेजियम व्यवस्था लागू की गई। कानून मंत्री ने यह भी कहा कि देश के उच्च न्यायालयों में पिछले 10 वर्षों से दीवानी, फौजदारी तथा अन्य मामले विचाराधीन हैं। उनकी निगरानी कराकर शीघ्र निस्तारण किया जाए। 

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