मजदूरों को साइकिल से घूमकर मास्क, भोजन बांट रहे इलाहाबाद विवि के प्रोफेसर 'हरियाली गुरु'

Edited By Moulshree Tripathi,Updated: 30 May, 2020 08:15 PM

allahabad university professor  hariyali guru  distributing

कहते हैं कि यदि इंसान से ज्यादा कोई निर्दयी नहीं तो उससे ज्यादा कोई दयालू भी नहीं होता है। कुछ ऐसा ही नजारा दिखा उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में जहां कोरोना संकट के बीच मजदूरों का दर्द समझा है इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एनबी सिंह...

प्रयागराजः कहते हैं कि यदि इंसान से ज्यादा कोई निर्दयी नहीं तो उससे ज्यादा कोई दयालू भी नहीं होता है। कुछ ऐसा ही नजारा दिखा उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में जहां कोरोना संकट के बीच मजदूरों का दर्द समझा है इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एनबी सिंह ने और उनकी मदद के लिए साइकल लेकर सड़क पर निकल पड़े हैं। पूरे दिन वह जहां मजदूरों को खाने-पीने की चीजें बांटते हैं वहीं, उन्हें मास्क और सैनिटाइजर भी देते हैं। यह सब कुछ वह अपनी जमा पूंजी से करते हैं।

साइकिल से निकलते हैं कड़ी धूप में 
बता दें कि प्रोफेसर पर्यावरण के प्रति अपार प्रेम रखते हैं। उनके प्रेम का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सक्षम होते हुए भी वह कार या मोटरसाइकल से न चलकर साइकल से ही कड़ी धूप में लोगों की मदद को निकलते हैं। उनके इसी पर्यावरण प्रेम के कारण शहर उन्हें 'हरियाली गुरु' के नाम से भी जानता है। इसलिए नहीं की वह वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर हैं। बल्कि उन्हें यह नाम उनके काम की बदौलत मिला है। विवि के चारों संकायों में दिखने वाली हरियाली उन्हीं की देन है। इसके लिए उन्होंने अपना धन और पसीना दोनों बहाया है।

प्रकृति प्रेम की वजह से नाम पड़ा 'हरियाली गुरु'
63 वर्षीय प्रकृति प्रेमी यह प्रफेसर क्षमतावान होते हुए भी गाड़ी नहीं बल्कि साइकिल से चलते हैं। साइकिल के आगे बास्केट लगवा रखी है। इस बास्केट में कभी ब्रेड, मक्खन और बिस्किट तो कभी मास्क और सेनिटाइजर रखकर जरूरतमंदों को बांटते हुए उन्हें देखा जा सकता है। मुंह पर मास्क, हाथ में ग्लब्स और गले में यूनिवर्सिटी का आईडी कार्ड लटकाए वह यूनिवर्सिटी के आसपास स्थित लल्ला चुंगी चौराहे पर प्रवासी मजदूरों एवं अन्य जरूरतमंदों की मदद करते हुए अक्सर देखे जा सकते हैं।

उन्होंने अभी तक 25 क्विंटल राशन, 15 हजार रुपए के मास्क और छह हजार के अधिक के सेनिटाइजर वितरित कर चुके हैं। साढ़े आठ हजार के 550 मास्क उन्होंने नैनी सेंट्रल जेल से खरीदे थे, जिसे बंदियों ने तैयार किया था। ब्रेड, बटर, बिस्किट, फल और मट्ठे का तो कोई हिसाब ही नहीं है। पूछने पर कहते हैं, जरूरत मंदों की मदद आगे भी करता रहूंगा, मुझे बहुत आनंद आता है ऐसा करके। राष्ट्र निर्माता सड़क पर है तो मैं घर में कैसे रहूं।

 

 

 

 

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