महंत हरि गिरी के बयान से अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेन्द्र गिरी ने लिया यू टर्न, कही ये बात

Edited By Umakant yadav,Updated: 04 Jan, 2021 04:52 PM

akhara parishad narendra giri took a u turn with mahant hari giri s statement

साधु संतों की जानी मानी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी को किन्नर अखाड़े के मसले पर उस समय यू टर्न लेना पड़ गया जब परिषद के महामंत्री महंत हरि गिरि पद छोड़ने को तैयार हो गये।

प्रयागराज: साधु संतों की जानी मानी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरी को किन्नर अखाड़े के मसले पर उस समय यू टर्न लेना पड़ गया जब परिषद के महामंत्री महंत हरि गिरि पद छोड़ने को तैयार हो गये। हाल ही में अखाड़ा परिषद की हुई बैठक के दौरान परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने किन्नर अखाड़े एवं परी अखाड़े के 14वें अखाड़े के रूप में विरोध किया था। साथ ही अपील की थी कि दोनों अखाड़ों को कोई सुविधा नहीं दी जाए।              

जूना अखाड़े के संरक्षक एवं अखाड़ा परिषद के महामंत्री महंत हरि गिरि ने कहा कि अगर अखाड़ा परिषद किन्नर अखाड़े को बाहर करता है तो वो खुद महामंत्री का पद छोड़ देंगे। जिन किन्नरों को उन्होंने सम्मान का आश्वासन दिया था, उनका साथ नहीं छोड़ेंगे। परिषद अध्यक्ष महंत गिरी ने कहा कि उन्होने 14वें अखाड़ा के रूप में मान्यता देने का विरोध किया है। यदि कोई किसी के साथ विलय करता है तो उसका विरोध नहीं किया जा सकता। परी अखाड़ा पर रोक जारी रहेगी।       

प्रयागराज किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर स्वामी कौशल्यानंद गिरि (टीना मां) तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि किन्नर अखाड़ा का गठन वर्ष 2016 में हुआ। अखाड़ा परिषद के विरोध के बावजूद किन्नर अखाड़ा उज्जैन कुंभ का हिस्सा था। उसके बाद 2019 में प्रयागराज के ‘दिव्य कुंभ-भव्य कुंभ'' का सनातन परंपरा के रूप में हिस्सा रह चुका है तथा जूना अखाड़े के साथ ही शाही स्नान (अमृत स्नान)भी किया।

उन्होने कहा ‘‘ हम सनातनी बच्चे है। सनातन धर्म एवं सामाजिक उत्थान किन्नर अखाड़ा का मुख्य लक्ष्य है। किन्नर अखाड़ा सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार को लेकर प्रतिबद्ध है। पुराणों और पौराणिक कथाओं एवं आख्यानों में भी किन्नर का उल्लेख किया गया है। शवि पुराण में जक्रि कयिा गया है।हरिवंश पुराण में इनका जिक्र मिलता है। महाभारत में शिखण्डी भी किन्नर ही थे।''       

महमण्डलेश्वर ने कहा कि किन्नर तो उप देवता की श्रेणी में आते हैं और उप देवता को साधु महात्मा से आज्ञा लेने की आवश्यकता नहीं है। मानस में जब लिखा है देव दनुज किन्नर नर श्रेणी, सादर मज्जहि सकल त्रिवेणी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हम सभी सनातन धर्म का पालन करने वाले सनातनी हैं। हम हैं किन्नर। देव, दानव, यक्ष, गर्न्धव, किन्नर अप्सरा एसंत महात्मा और साधु सभी संत महात्मा साधुओं में आते हैं।                     

टीना मां ने कहा कि धर्म अखाड़ा परिषद या किसी को अधिकार नहीं देता कि किसी सनातनी को अपने धर्म का पालन करने के लिए उनसे प्रमाणपत्र लेना पड़े। धर्म क्षेत्र में अगर उप देवता को साधुओं की आज्ञा लेकर आना पड़े, सनातन धर्म के लिए इससे बड़ी लज्जा कोई नहीं होगी। उन्होंने कहा कि उनके समाज का शिखंडी नहीं होती तो महाभारत युद्ध जीता ही नहीं जाता, धर्म स्थापित नहीं होता।

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