यूपी: मूर्तियों-स्मारकों को चमकाने में जुटे अफसर, कहीं माया के वापसी की आहट तो नहीं!

Edited By ,Updated: 03 Mar, 2017 04:15 PM

up sculpture monuments officers involved in polishing

बसपा सुप्रीमो मायावती ने करोड़ों रुपयों की लागत में अपनी हुकूमत के दौरान राजधानी लखनऊ में कई पार्कों का निर्माण करवाया है। 2012 में उत्तर प्रदेश की सत्ता हाथ से जाने के बाद इन पार्कों के भी दिन लद गए।

लखनऊ: बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपनी हुकूमत के दौरान राजधानी लखनऊ में करोड़ों रुपयों की लागत में कई पार्कों का निर्माण करवाया है। 2012 में उत्तर प्रदेश की सत्ता हाथ से जाने के बाद इन पार्कों के भी दिन लद गए। पार्क की बेकर्दी हो गई। प्रदेश सरकार ने 4 सालों में एक बार भी इसकी सुध नहीं ली। लेकिन अब यहां का नजारा काफी बदला-बदला सा लग रहा है। करोड़ों रुपये खर्च कर अचानक इन पार्कों और स्मारकों को तेजी से चमकाया जा रहा है। यह चर्चा चल निकली है कि कहीं यह बहन जी के आने की आहट तो नही! 

टूटे गेटों की मरम्मत शुरू 
मायावती के बनाए कई स्मारकों में करीब 200 गेट लगाए गए थे। इनमें से कई टूटे पड़े थे। कभी इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं आया, लेकिन अब एकाएक इनकी भी मरम्मत होनी शुरू हो गयी है। करीब 50 फीसदी गेटों की मरम्मत कर उन्हें दुरुस्त किया जा चुका है। बाकी का काम चल रहा है। 

अधिकारी कोई चांस लेने के पक्ष में नहीं 
मायावती की सरकार आती है कि नहीं इस सवाल का जवाब तो 11 मार्च को मिलेगा, लेकिन अधिकारियों का स्मारकों के लिए अचानक उमड़ा दर्द ये जरूर बताता है कि अधिकारी कोई चांस नहीं लेना चाहते। यही कारण है की चार साल से बेसुध पड़े स्मारकों का खयाल उन्हें अचानक से आ गया। सूत्रों का कहना है कि इन सभी कामों को 11 मार्च से पहले पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। आला अधिकारी जल्दी काम पूरा करने का दबाव बनाए हुए हैं। उन्होंने चुनाव नतीजे आने से पहले स्मारकों को दुरुस्त करने का आदेश दिए गए हैं। 

चांस नहीं लेना चाहते अधिकारी 
मायावती की सरकार आती है कि नही इस सवाल का जवाब तो 11 मार्च को मिलेगा, लेकिन अधिकारियों का स्मारकों के लिए अचानक उमड़ा दर्द ये जरूर बताता है कि अधिकारी कोई चांस नहीं लेना चाहते। यही कारण है की चार साल से बेसुध पड़े स्मारकों का खयाल उन्हें अचानक से आ गया। वहीं संबंधित अधिकारियों का कहना है कि ये रूटीन का कार्य है। बजट जारी करने में देरी हुई थी, जिसके चलते काम देर में शुरू हुआ है।अखिलेश राज में बेहाल रहे इन पार्कों और स्मारकों के दिन फिरने लगे हैं। अधिकारी इसे भले ही रूटीन काम करार दें, लेकिन जिन पार्कों मे पिछले पांच साल में कोई अधिकारी झांकने तक नहीं आया, वहां अधिकारियों की चहलकदमी ये साफ दिखाती है कि अधिकारी कोई चांस लेने के मूड में नहीं हैं। 

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