यूपी की ऐतिहासिक सीट फूलपुर का यह है इतिहास

Edited By Punjab Kesari,Updated: 11 Mar, 2018 12:03 PM

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उत्तर प्रदेश की 2 लोकसभा सीट गोरखपुर-फूलपुर के लिए मतदान आज यानि रविवार को शुरु हो चुका है। यह तो सभी जानते हैं कि गोरखपुर की सीट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और फूलपुर की सीट उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद खाली हुई...

लखनऊः उत्तर प्रदेश की 2 लोकसभा सीट गोरखपुर-फूलपुर के लिए मतदान आज यानि रविवार को शुरु हो चुका है। यह तो सभी जानते हैं कि गोरखपुर की सीट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और फूलपुर की सीट उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद खाली हुई है, लेकिन इससे पहले के इतिहास से बहुत कम लोग ही वाकिफ हैं। आज हम आपको फूलपुर के पुराने इतिहास से रुबरु करवाने जा रहे हैं।
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बता दें कि देश मेें जब पहली बार चुनाव हुआ था तब फूलपुर नाम की कोई सीट ही नहीं थी। फूलपुर को इलाहाबाद ईस्ट कम जौनपुर वेस्ट के नाम से जाना जाता था। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने इस सीट पर जीत हासिल की थी। यहां पर 1952 में चुनाव हुआ था। इस चुनाव में पंडित नेहरू और मसूरिया के बीच मुकाबला हुआ था, जिसमें पंडित नेहरू को 2,33,571 और मसूरिया को 1,81,700 वोट मिलें। बहुत ही अच्छे मार्जन से पंडित नेहरु ने जीत अपने नाम दर्ज की। लोग भी पंडित नेहरु को काफी पसंद करने लगे थे। लोगों में नेहरु का बोलबाला था। वहीं 1957 में फिर चुनाव हुआ, जिसमें नेहरु ने फिर अपनी जीत को दोहराया। नेहरु के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी एक अच्छी पार्टी के रुप में उभरी।
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1962 में जब चुनाव आया तो नेहरु के सामने राम मनोहर लोहिया थे। मनोहर लोहिया के पिता गांधी जी के बहुत बड़े अनुयायी थे। उनके पिता जब गांधी जी से मिलने जाते तो राम मनोहर को भी अपने साथ ले जाया करते थे। इसके कारण गांधी जी के विराट व्यक्तित्व का उन पर गहरा असर हुआ। उन्होंने नेहरु के विरुद्ध चुनाव लड़ने का फैसला किया। चुनाव से ठीक पहले मनोहर लोहिया ने नेहरु को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने उनके व्यक्तित्व का बखान किया। पत्र को पढ़कर नेहरु ने फैसला किया वह चुनाव प्रचार नहीं करेंगे और निष्पक्ष चुनाव लड़ेंगे, लेकिन मनोहर लोहिया की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए नेहरु घबरा गए। जिसके बाद नेहरु चुनाव प्रचार के लिए इलाहाबाद आ गए। इस चुनाव में नेहरू को 1,18,931 वोट मिलें। वहीं संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की तरफ से लड़ रहे राम मनोहर लोहिया को 54,360 वोट मिलें। नेहरु ने इस बार भी जीत अपने नाम की। 27 मई, 1964 को नेहरू को दिल का दौरा पड़ा, जिसमें उनकी मौत हो गई।
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नेहरु की मौत से फूलपुर में एक बार फिर उपचुनाव हुआ। 1967 के इस उपचुनाव में पंडित नेहरु की बहन विजय लक्ष्मी पंडित को कांग्रेस ने खड़ा किया। इस उपचुनाव में उनका सामना जनेश्वर मिश्र से हुआ, जिसमें जीत विजय लक्ष्मी की हुई। जिस समय यह उपचुनाव हो रहा था उस समय जनेश्वर मिश्र नैनी जेल में बेद थे। राम मनोहर लोहिया ने उनका हौसला अवजाई करते हुए चुनाव लड़ने को कहा। इस उपचुनाव में विजय लक्ष्मी को 95,306 और जनेश्वर को 59,123 वोट मिलें और विजय लक्ष्मी ने जीत हासिल की। 1968 में विजय लक्ष्मी यूएन चली गई। जिसके चलते 1969 में दोबारा उपचुनाव हुआ। इस उपचुनाव में इंदिरा के वफादार केडी मालवीय को जनेश्वर मिश्र के विरुद्ध खड़ा किया गया, जिसमें जनेश्वर मिश्र ने जीत हासिल की। जब जनेश्वर मिश्र लोकसभा पहुंचे तो उनकी मुलाकात राजनारायण से हुई। राजनारायण ने उनको छोटे लोहिया की उपाधि दी।
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1971 के उपचुनाव में जनेश्वर मिश्र के खिलाफ इंदिरा गांधी ने विश्वनाथ प्रताप सिंह को टिकट दिया। जिसमें विश्वनाथ प्रताप को 1,23095, बीडी सिंह को 56,315 और जनेश्वर मिश्र को 28,760 वोट मिलें। 1971 में हुए चुनाव में जनेश्वर मिश्र के बाद इस सीट से पहली बार जीतकर विश्वनाथ प्रताप सिंह संसद पहुंचे। वहीं एक के बाद एक नेता इस सीट पर आएं। लेकिन यह सीट उस समय फिर से चर्चा में आई जब बाहुबली अतीक अहमद ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत यहां से की। वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव हुआ। मोदी मैजिक का असर इस लोकसभा सीट पर भी देखने को मिला। जिसका नतीजा यह रहा है कि फूलपुर लोकसभा सीट पर पहली बार बीजेपी ने भगवा फहराया और केशव प्रसाद मौर्य ने जीत दर्ज की, लेकिन उनके डिप्टी सीएम के बाद एक बार फिर उपचुनाव में इस एतिहासिक सीट पर चुनावी दंगल शुरु हो गया है। अब देखना यह है कि रविवार को फूलपुर की जनता अपना सांसद किसे चुनती है।
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