नदवा की मस्जिद में ही नहीं हुआ मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की अपील का असर

Edited By ,Updated: 21 Apr, 2017 07:08 PM

the impact of muslim personal law board appeal not only in nadva mosque

देश में तीन तलाक को लेकर जारी बहस और तेज होने के बीच आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड द्वारा तलाक के सिलसिले में जारी आचार संहिता को जुमे की नमाज के खुतबे में पढऩे की अपील का असर उस नदवा की मस्जिद में भी नहीं हुआ...

लखनऊ: देश में तीन तलाक को लेकर जारी बहस और तेज होने के बीच आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड द्वारा तलाक के सिलसिले में जारी आचार संहिता को जुमे की नमाज के खुतबे में पढऩे की अपील का असर उस नदवा की मस्जिद में भी नहीं हुआ, जहां बैठकर बोर्ड के शीर्ष पदाधिकारियों ने इस संहिता को तैयार किया था। 

आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने पिछले रविवार को तलाक के सिलसिले में एक आचार संहिता (कोड आफ कंडक्ट) जारी करके सभी इमामों से अपील की थी कि वे जुमे की नमाज से पूर्व के खुतबे (भाषण) में खासतौर पर इस संहिता को पढ़कर सुनाएं। वह अपील जारी होने के बाद आज पहला जुमा था। माना जा रहा था कि प्रदेश के तमाम शहरों में इस आचार संहिता को खुतबे के दौरान पढ़कर सुनाया जाएगा, मगर खुद नदवा की मस्जिद में ही इसका जिक्र नहीं हुआ। 

बोर्ड के वरिष्ठ कार्यकारिणी सदस्य मौलाना यासीन उस्मानी का कहना है कि संभवत: उस आचार संहिता के पर्चे सभी इमामों तक नहीं पहुंचे हैं, इसलिये उनकी चर्चा नहीं हुई। धीरे-धीरे यह बात पूरे देश के इमामों तक पहुंच जाएगी। उस्मानी ने कहा कि उनके बदायूं शहर की मस्जिदों में तलाक को लेकर बोर्ड द्वारा जारी आचार संहिता का जिक्र किया गया है और बोर्ड की तरफ से जगह-जगह जलसे आयोजित करके भी लोगों को जागरूक किया जा रहा है। 

इस बारे में, बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी से बात करने की कोशिश की गयी लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी। बोर्ड ने गत 15-16 अप्रैल को नदवा में आयोजित अपनी कार्यकारिणी की बैठक में तलाक को लेकर आचार संहिता तैयार की थी। बैठक में पारित प्रस्ताव में तमाम उलमा और मस्जिदों के इमामों से अपील की गयी थी कि वह इस आचार संहिता को जुमे की नमाज के खुतबे में नमाजियों को जरूर पढ़कर सुनाएं और उस पर अमल करने पर जोर दें। 

देश में तीन तलाक को लेकर जारी बहस दिन-ब-दिन तेज होती जा रही है। मुस्लिम उलमा का कहना है कि कम जानकारी की वजह से तीन तलाक को लेकर भ्रम की स्थिति बन रही है। बोर्ड की महिला शाखा की प्रमुख डाक्टर असमां जहरा का कहना है कि मुस्लिम महिलाआें की तलाक का मामला धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक मसला है। भारत के पूरे समाज में महिलाआें के मुद्दे एक ही जैसे हैं। एेसे में सिर्फ मुस्लिम कानून को ही निशाना नहीं बनाया जाना चाहिये। 

मालूम हो कि आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने तीन तलाक की व्यवस्था को खत्म करने से इनकार करते हुए शरई कारणों के बगैर तीन तलाक देने वाले मर्दों के सामाजिक बहिष्कार की अपील की है। हालांकि तीन तलाक का विरोध कर रहे संगठनों ने इसे नाकाफी बताया है। 

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