अटकलें खत्म, नहीं होगा सपा-रालोद का गठबंधन

Edited By ,Updated: 19 Jan, 2017 04:16 PM

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उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ महागठबन्धन में राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के शामिल होने की लग रही अटकलें समाप्त हो गई हैं।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ महागठबन्धन में राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के शामिल होने की लग रही अटकलें समाप्त हो गई हैं। सपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरणमय नंदा ने रालोद के साथ गठबंधन से साफ इंकार कर दिया है। उन्होंने कहा है कि प्रदेश में सपा 300 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी। बाकी की अन्य सीटें कांग्रेस को मिलेंगी। साथ ही उन्होंने कहा है कि उनकी पार्टी का अन्य किसी भी क्षेत्रिय पार्टियों से भी गठबंधन नहीं होगा। हमारा लक्ष्य 2017 के साथ 2019 भी है। जल्द ही कांग्रेस के साथ गठबंधन का ऐलान हो जाएगा।  

सीटों का फंसा पेंच 
इससे पहले नाम न छापने की शर्त पर रालोद के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा,‘सम्मानजनक सीटें नहीं दिये जाने पर गठबन्धन में कैसे शामिल हुआ जा सकता है।’ उन्होंने यह तो नहीं बताया कि उनका दल कितनी सीटों की मांग कर रहा है और कितनी मिल रही हैं लेकिन उनसे मिले संकेतों के अनुसार यदि कांग्रेस और सपा रालोद को 30-35 सीटें भी देंगे तो उनका दल गठबन्धन का हिस्सा बन सकता है।’ 

तो अन्य पार्टियों से गठबंधन करेगी रालोद 
पदाधिकारी ने कहा कि कांग्रेस और सपा गठबन्धन में शामिल नहीं होने की दशा में उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू), आर के चौधरी के बीएस फोर, शरद पवार के राष्ट्रवादी कांग्रेस जैसे दलों से समझौता कर चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस और सपा से समझौता नहीं होने की दशा में रालोद पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 40 से अधिक सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करेगा। 

अखिलेश के लिए दोबारा सत्ता में वापसी की चुनौती
दूसरी ओर, सपा अध्यक्ष बनने के बाद अब अखिलेश यादव के पास 2017 में दोबारा सत्ता में वापसी करने की चुनौती है, इसलिये वह कम से कम 300 सीटों पर चुनाव लडऩा ही चाहती है। 300 से अधिक सीटों पर उम्मीदवार उतारने की मंशा की वजह से ही वह अपने खाते की सीटों को किसी हालत में दूसरे दलों को नहीं देना चाहती। वहीं, करीब तीन दशकों से सत्ता से बाहर कांग्रेस इस राज्य में अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रही है। कुछ महीने पहले तक विकास की राजनीति की बात कर दोबारा सत्ता में वापसी का दावा करने वाले अखिलेश यादव को भी अब गठबंधन वक्ती जरूरत लगने लगा है। यही वजह है कि दोनों ही दल अब गठबंधन को तैयार हैं लेकिन दोनों ही इसे साम्प्रदायिक ताकतों को सत्ता से दूर रखने के लिए समय की जरूरत बता रहे हैं। 

गठबंधन को लेकर अखिलेश पहले से इच्छुक
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लगातार कहते आ रहे थे कि वह कांग्रेस से गठबंधन के इच्छुक हैं। उन्होंने कई बार बयान भी दिया कि उनकी पार्टी को बहुमत मिलेगा लेकिन अगर गठबंधन होता है तो 300 से ज्यादा सीटें हासिल होंगी। हालांकि,मुलायम सिंह यादव ने गठबंधन से इन्कार कर दिया था। लेकिन, अब समाजवादी पार्टी में अखिलेश युग आ गया है। उधर, कांग्रेस को 2017 से ज्यादा 2019 की चिन्ता है। 2019 में लोक सभा चुनाव प्रस्तावित है। विधानसभा चुनाव की अपेक्षा कांग्रेस लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर केन्द्र में सरकार बनाना जरूरी समझ रही है और इसके लिये उसका उत्तर प्रदेश में मजबूत होना जरूरी है। उसकी ओर से गठबन्धन की कवायद शायद इसीलिये शुरू की गयी थी। 

गठबंधन कांग्रेस की मजबूरी
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ‘27 साल यूपी बेहाल’ और ‘राहुल किसान परिवर्तन यात्रा’ के दम पर यूपी में पैर जमाने की कोशिश करने वाली कांग्रेस को यह एहसास हो गया था कि बिना किसी समझौते के उत्तर प्रदेश में पैर जमाना मुश्किल है। 2019 लोकसभा चुनावों में जीत हासिल करनी है तो उसे उत्तर प्रदेश में अपनी स्थिति मजबूत करनी होगी। इसके लिए उसे जहां विधानसभा चुनावों में ज्यादा से ज्यादा सीट जीतनी होगी वहीं वोट प्रतिशत भी बढ़ाने होंगे। अकेले दम पर कांग्रेस के लिए ऐसा करना मुमकिन नहीं है। उसे किसी के साथ गठबंधन का सहारा लेना ही वक्त की जरुरत थी। 

गठबंधन से कांग्रेस को फायदा
उनका कहना है कि कांग्रेस को इस गठबंधन से सबसे ज्यादा फायदा होना है। इसका ताजा उदाहरण 2015 बिहार विधानसभा चुनाव है। जहां 2010 में कांग्रेस को महज चार सीटें हासिल हुई थी। 2015 में महागठबंधन के बाद उसकी सीटें बढकर 27 हो गई। 41 सीटों पर उसने उम्मीदवार खड़े किये थे। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की रणनीति भी यही है कि सपा के सहारे वह करीब 60 से 70 सीट हासिल कर ले ताकि आगामी लोकसभा चुनाव में इसका लाभ मिल सके। 

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