राज बब्बर और गुलाम नबी आजाद की उत्तर प्रदेश से हो सकती है छुट्टी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Mar, 2018 06:31 PM

raj babbar and ghulam nabi azad can leave uttar pradesh

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कमान संभाल रहे राजबब्बर और प्रभारी गुलाम नबी आजाद को उनके मौजूदा दायित्व से जल्द ही छुट्टी मिल सकती है।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कमान संभाल रहे राजबब्बर और प्रभारी गुलाम नबी आजाद को उनके मौजूदा दायित्व से जल्द ही छुट्टी मिल सकती है। पार्टी सूत्रों ने आज यहां बताया कि नई दिल्ली में 16 मार्च से शुरू होने वाले कांग्रेस के तीन दिवसीय सत्र के समापन के बाद पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी दोनों नेताओं को उनके पद से हटाकर नई जिम्मेदारी दे सकते हैं। 

यह भी कयास लगाये जा रहे है कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बगावत कर कांग्रेस का दामन थामने वाले नसीमुद्दीन सिद्दिकी को प्रदेश में कांग्रेस की बागडोर सौंपी जा सकती है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव के चाचा और वरिष्ठ नेता शिवपाल सिंह यादव सत्र के दौरान कांग्रेस से जुड़ सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो वह भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के मजबूत दावेदार हो सकते हैं। 

सूत्रों ने बताया कि हाल ही में राज्य में संपन्न निकाय चुनाव में कांग्रेस के लचर प्रदर्शन से पार्टी गोरखपुर और फूलपुर संसदीय क्षेत्र में 11 मार्च को होने वाले उपचुनाव को जीतने की उम्मीद खो चुकी है। पार्टी नेताओं का मानना है कि इन दोनो ही सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी अपनी जमानत भी जब्त करा सकते हैं। 

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने दावा किया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रभाव वाले गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में कांग्रेस यदि अपनी स्थिति में सुधार कर सकती है तो उत्तर प्रदेश में ऐसा क्यों नही हो सकता। पिछले चुनावों में हालांकि भाजपा ने सपा और बसपा जैसी बड़े जनाधार वाले दलों को भी किनारे लगा दिया था मगर कांग्रेस इन दलों के बड़े नेताओ की मदद से अपनी हालत को मजबूती प्रदान कर सकती है।  

उन्होंने कहा कि पार्टी महासचिव गुलाम नवी आजाद को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाये जाने और राजबब्बर को प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति कांग्रेस की हालत में सुधार नही ला सकी। वर्ष 2014 में हुये लोकसभा चुनाव में पार्टी 22 सीटों से खिसक कर मात्र दो में सिमट गयी। केवल तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही अपनी सीट बचाने में सफल रहे। कमोवेश पिछले साल संपन्न विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस की हालत पतली रही। इस चुनाव को कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन कर लड़ा। इसके बावजूद उसके मात्र सात विधायक ही विधानसभा की देहरी लांघने में सफल रहे। 

सूत्रों ने दावा किया कि प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर लगातार दो चुनावों में पार्टी को जोरदार शिकस्त का सामना करना पडा जिसके बाद बब्बर ने राहुल गांधी के सामने अपने इस्तीफे की पेशकश की थी मगर गांधी ने उसे ठुकरा कर एक और मौका दिया था। 

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि राज्य मे पिछले साल हुये नगरीय निकाय चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन से हाईकमान चिंतित है। उसका मानना है कि बब्बर की टीम इस चुनाव में उचित प्रत्याशियों का चयन करने में पूरी तरह फ्लाप साबित हुयी। यहां तक की लखनऊ की मेयर पद की सही उम्मीदवार की तलाश भी प्रदेश कांग्रेस नही कर सकी। इससे आहत होकर पार्टी नेतृत्व बब्बर और आजाद की छुट्टी करने पर मजबूर है। 

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