भूख हड़ताल पर बैठंगी इंदिरा, आखिरी क्षणों में करनी है सियासत

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Jan, 2018 05:54 PM

hunger strike by indira is for political reasons

उत्तराखंड कांग्रेस की दिग्गज नेता इंदिरा हृदेश संभवत: सियासी जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं। लेकिन उनकी इच्छाएं आज फिर सियासी पिच पर ताबड़तोड़ बैटिंग की हिलोरे मार रही है।

देहरादून/ब्यूरो। उत्तराखंड कांग्रेस की दिग्गज नेता इंदिरा हृदेश संभवत: सियासी जीवन के अंतिम पड़ाव पर हैं। लेकिन उनकी इच्छाएं आज फिर सियासी पिच पर ताबड़तोड़ बैटिंग की हिलोरे मार रही है। लंबी पारी के बावजूद हमेशा पहले स्थान पर आने से चूकती रही इंदिरा इस बार कुछ कर गुजरने की चाहत लिए हैं। कारण सीधा है कि उनके सामने मौजूदा हालात में पहले स्थान के सभी दिग्गज या तो पार्टी छोड़ चुके हैं या पार्टी में करीब करीब हाशिए पर हैं।

 

 इंदिरा खुद अपने मुंह से विधान सभा चुनाव से पहले अपनी सियासत के अंतिम छोर की ओर पहुंचने का सार्वजनिक एलान किया था। याद करिये, 14 अक्टूबर 2016 को वो वाक्या जब हल्द्वानी में गौला नदी पार आयोजित अन्तरराज्यीय बस अड्डा (आई.एस.बी.टी.) के उद्घाटन समारोह में इंदिरा हृदयेश और कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव प्रकाश जोशी के बीच मंच पर बैठने को लेकर विवाद हो गया था।

 

उस वक्त इंदिरा ने प्रकाश को नसीहत देते हुये कहा कि 'मेरी राजनीति तो समापन की ओर है प्रकाश को विवाद में पडऩे के बजाए इस क्षेत्र में आगे बढऩा चाहिये। ये वो समय था जब कांग्रेस में इंदिरा की हैसियत नम्बर दो की थी और हर तरफ  हरीश रावत का ही सिक्का चलता था। अब हालात बदल चुके हैं। हरीश हासिये पर हैं तो इंदिरा को लग रहा है कि वे सियासत की अपनी पारी के स्लो ओवरों में ताबड़तोड़ बैटिंग कर सकती हैं। आगामी 30 जनवरी को हल्द्वानी में उनके भूखहड़ताल में बैठने के ऐलान को इसी कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।      

 

एनडी तिवारी से लेकर विजय बहुगुणा व हरीश रावत की सरकार के शासनकाल तक इंदिरा हृदयेश हमेशा नम्बर दो की हैसियत में रहीं। सियासी उठापटक के बीच जब भी मुख्यमंत्री बदलने का मौका आता मायूसी ही हमेशा उनके हाथ लगी, लेकिन मौजूदा समय में हालात ने करवट ली है। विजय बहुगुणा, हरक सिंह और यशपाल आर्य जैसे खांटी नेता भाजपा का दामन थाम चुके हैं।

 

कांग्रेस के सार्वजनिक जनाधार वाले नेता हरीश रावत विधानसभा चुनाव में दो जगहों से हार कर हासिये में जा चुके हैं। यानि परिस्थितियां बनीं तो वह सीएम तक बन सकती हैं। इंदिरा अच्छी तरह जानती हैं कि कांग्रेस के बुरे दिनों में भी उनकी सक्रियता उन्हें टीम राहुल में भी जबह दिलवा सकती है। 29 जनवरी को दून में मोदी सरकार के खिलाफ  कांग्रेस की साइकिल रैली की ध्वजवाहक भी इंदिरा ही होंगी।  

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