अग्नि परीक्षा में कैसे सफल होंगे गोरखपुर के महाराज जी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Nov, 2017 11:16 PM

how to succeed in the agni test  maharaj ji from gorakhpur

मुलायम और मायावती की जाति आधारित राजनीति से तंग आकर यूपी की जनता ने बीजेपी को समर्थन दिया। लोगों को लगा की मोदी ने जो कहा है वो होकर ही रहेगा। यही कारण रहा कि सबका साथ सबका विकास के नारे को यूपी के आम जन मानस अपनाते हुए बीजेपी पर दोबारा विश्वास ...

गोरखपुर:(आशीष पाण्डेय): मुलायम और मायावती की जाति आधारित राजनीति से तंग आकर यूपी की जनता ने बीजेपी को समर्थन दिया। लोगों को लगा की मोदी ने जो कहा है वो होकर ही रहेगा। यही कारण रहा कि सबका साथ सबका विकास के नारे को यूपी के आम जन मानस अपनाते हुए बीजेपी पर दोबारा विश्वास दिखाया। गोरखपुर से सांसद योगी आदित्य नाथ को जब प्रदेश की बागडौर दी गई तो भी जनता ने उन्हें भी हाथों हाथ उठा लिया। यूपी के सीएम बनने के बाद योगी आदित्यनाथ को लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

1- राज्य के नेताओं के बीच समन्वय की कमी
यूपी में बीजेपी की सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के नेता ही बनते जा रहे हैं। संगीत सोम जैसे नेताओं के बयान नगर निगम चुनाव के समय ही आए हैं। इन बयानों से एक बार फिर बीजेपी की हिंदुत्व छवि खुलकर सामने आ गई। अगर ऐसा ही चलता चहा तो योगी से अल्पकसंख्य्क समाज की दूरी बढ़ती जाएगी। जिसका फायदा निश्चित रूप से कांग्रेस-सपा को को होगा। योगी के लिए पार्टी के आलाकमान यानी नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ राज्य के नेताओं के बीच समन्वय बनाए रखना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य होगा।

2- शुरू हो गया कांउटर का कॉन डाउन 
पिछली समाजवादी सरकार की जिस कथित कमी को विपक्ष ने सबसे ’यादा मुद्दा बनाया, वह था- कानून व्यवस्था। खराब कानून व्यवस्था को लेकर भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के अलावा कुछ महीनों पहले तक कांग्रेस भी जबर्दस्त आक्रामक रही थी। जगह-जगह जमीनों के अवैध कब्जेे से लेकर हत्या, अपहरण और बलात्कार जैसी घटनाओं को लेकर पिछली सरकार को कठघरे में खड़ा किया गया था। तो जाहिर था योगी इसे गंभीरता से लेंगे। जिसका नजारा आए दिन देखने को मिल रहा है। पश्चिमी यूपी में लगभग 150 से अधिक अपराधियों का कांउटर किया जाना योगी के इस गंभीर रवैये की ओर इशारा कर रहा है। सार्वजनिक मंच से भी अपराधियों को ललकारने व धमकाने की बात बोल रहे हैं। स‘चाई भी यही है कि नई सरकार के लिए कानून व्यवस्था को दुरुस्त करना न सिर्फ चुनौतीपूर्ण है बल्कि उसकी विश्वसनीयता का स्तर भी इससे ही तय होगा।

3-वादा व दावा हैं पूरक
बीजेपी ने सरकार में आने से पहले जो वादा किया था उन्हें जल्दी से पूरा करना बड़ी चुनौती है। कारण यह है कि केंद्र की सरकार तीन साल से अधिक पुरानी हो चुकी है। जमीनी स्तर पर आम जन मानस को वादों के नाम पर केवल छोटी मोटी सौगातें ही मिल सकी हैं। नोटबंदी व जीएसटी का फौरी लाभ अभी देश को नहीं मिल रहा है यह जग जाहिर हो चुका है। ऐसे में योगी अपने घोषणापत्र को तर्क रहित पूरा करेंगे तो लाभ उन्हें ही मिलेगा। तर्क रहित इसीलिए क्योंकि किसान कर्जमाफी के नाम पर बहुत से किसानों को रुपया दस रुपया ही लाभ मिल सका है। विपक्ष इस मुद्दे को लेकर योगी पर लगातार हमला कर रहा है। घोषणाओं पर जनता की निगाह और उम्मीद दोनों होती है। रोजगार, उद्योग जैसे तमाम वादे लागू करना आसान नहीं है।

4- राम मंदिर और पुराने एजेंडों पर जवाबदेही
भारतीय जनता पार्टी राम मंदिर जैसे मुद्दों को ये कहकर टालती रही है कि केंद्र और राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने पर ही वो इस पर अमल कर पाएगी। हालांकि पार्टी के नेता इस पर लगातार ये कहते रहे हैं कि वो अदालत के फैसले का इंतजार कर रहे हैं लेकिन अब केंद्र व सूबे दोनों जगह बीजेपी बहुमत में हैं। उसे देखते हुए मुख्यमंत्री को इस चुनौती से भी रूबरू होना पड़ रहा है। इसके अलावा संघ और उससे जुड़े दूसरे कुछ संगठनों के कट्टरवादी एजेंडे भी नई सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं।

5- प्रशासनिक चुनौतियां
नई सरकार के सामने प्रशासनिक अमले पर नियंत्रण रखना और अपने एजेंडों को लागू करवाना भी एक बड़ी चुनौती नजर आ रही है। प्रशासनिक अमला लंबे समय से बीएसपी और सपा सरकार के अधीन काम करने की अभ्यस्थ हो चुकी थी। ऐसे में बीजेपी सरकार का उन अधिकारियों के साथ तालमेल बनाना और अपनी पसंद के अधिकारियों को अहम जगहों पर तैनात करना चुनौती ही है। जानकारों का कहना है कि कई ऐसे भी अधिकारी हैं जो कि पिछली दोनों सरकारों में अपनी स्थिति मजबूत किए हुए थे, नई सरकार को ऐसे अधिकारियों से 'बचना' भी एक बड़ी चुनौती है। योगी जिस तरह से प्रशासनिक अमले पर नियंत्रण बनाने की कोशिश कर रहे हैं उससे असंतोष की भावना बढ़ती जा रही है।

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