विजयादशमी से सुल्तानपुर में परवान चढ़ेगा दुर्गापूजा महोत्सव, विसर्जन पूर्णिमा को

Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Sep, 2017 02:53 PM

durgapuja festival will be organized in vijayanadashi from sultanpur

उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर में विजयादशमी से शुरू होने वाले दुर्गापूजा समारोह में शामिल होने के लिये देश के कोने कोने से लोग आते हैं। सुलतानपुर में दुर्गापूजा समारोह विजयादशमी से शुरू होगा और पांच दिनों तक चलेगा।

सुल्तानपुर: उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर में विजयादशमी से शुरू होने वाले दुर्गापूजा समारोह में शामिल होने के लिये देश के कोने कोने से लोग आते हैं। सुलतानपुर में दुर्गापूजा समारोह विजयादशमी से शुरू होगा और पांच दिनों तक चलेगा। सबसे आकर्षक यहां का विसर्जन होता है जो परंपरा से हटकर पूर्णिमा को सामूहिक रूप से शुरू होकर करीब 48 घंटे में संपन्न होता है। 

कोलकाता शहर के बाद दुर्गापूजा की भव्यता और दिव्यता सुलतानपुर शहर में देखने को मिलती है। यहां मां भगवती की नौ दिन आराधना के बाद दशहरा से पंडालों की सजावट शुरू होती है। पांच दिनों तक अलग अलग तरह से होने वाली भव्य सजावट और दुर्गा जागरण से शहर अलौकिक हो उठता है। दुर्गापूजा में देश के कोने कोने से लोग शामिल होते है। 

उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर जिले का दुर्गापूजा महोत्सव कोलकाता के बाद दूसरा स्थान रखता है। करीब 53 बरस पहले वर्ष 1959 में शहर के ठठेरी बाजार में बड़ी दूर्गा के नाम से भिखारीलाल सोनी ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर यहां दुर्गापूजा महोत्सव के उपलक्ष्य में पहली मूर्ति स्थापना की थी। इस मूर्ति को उनके द्वारा बिहार प्रान्त से विशेष रूप से बुलाये गए तेतर पंडित व जनक नामक मूर्तिकारों ने प्रातिमा को बनाया था।

विसर्जन पर उस समय शोभा यात्रा डोली में निकाली गयी थी। डोली इतनी बड़ी होती थी जिसमे आठ व्यक्ति लगते थे। पहली बार जब शोभा यात्रा सीताकुंड घाट के पास पहुंची थी तभी जिला प्रशासन ने विर्सजन पर रोक लगा दी थी। बाद में लोगों के हस्तक्षेप के बाद विसर्जित हो सकी थी। यह दौर दो सालों तक ऐसे ही चला। वर्ष 1961 में शहर के ही रुहट्टा गली में काली माता की मूर्ति की स्थापना बंगाली प्रसाद सोनी ने कराई और फिर 1970 में लखनऊ नाका पर कालीचरण उर्फ नेता ने संतोषी माता की मूर्ति को स्थापित कराया। वर्ष 1973 में अष्टभुजी माता, श्री अबे माता, श्री गायत्री माता, श्री अन्नापूर्णा माता की मूर्तियां स्थापित कराई गई। केन्द्रीय दुर्गापूजा समिति महामंत्री सुनील श्रीवास्तव ने बताया कि शहर व आसपास क्षेत्रों में तीन सौ के आसपास और जिले में करीब सात सौ से ज्यादा मूर्तियां प्रतिवर्ष स्थापित की जा रही हैं।

गौरतलब है कि सर्वप्रथम स्थापित की गई मूर्तियों को कहार डोली पर उठाकर चलते थे जिसमें एक मूर्ति को उठाये जाने के लिये आठ कहार लगते थे। अब ट्रैक्टरों पर बिजली की जगमगाहट के साथ क्रमबद्ध झांकी के रुप में निकलती हैं। जिले की पहचान और गौरव दुर्गापूजा महोत्सव के रुप में इसलिये और बढ़ गया कि दशमी के दिन देश व प्रदेश के अन्दर मूर्तियां विसर्जित कर दी जाती हैं। यहां कुछ अलग ही परपरा का इतिहास है। दशमी के दिन रावण का पुतला फूंके जाने के पूर्व नौ दिनों तक शहर के रामलीला मैदान में संपूर्ण रामलीला की झांकी प्रस्तुत की जाती है। उसके बाद दशमी के दिन से सात दिनों तक दुर्गापूजा मेले का आयोजन होता है, जिसमें भरत मिलाप से लेकर विविध कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
 

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