SP-RLD का महागठबंधन हुआ तय: कैराना से तबस्सुम और नूरपुर से नईमुल हसन होंगे उम्मीदवार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 May, 2018 02:24 PM

by poll newamul hassan will be noorpur and tabasum from karaana candidate

सपा-आरएलडी का महागठबंधन तय होने के बाद दोनों दलों ने अपने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है।

लखनऊ: फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को करारी शिकस्त देने वाली समाजवादी पार्टी (सपा) जीत के सिलसिले को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नब्ज समझी जाने वाली कैराना संसदीय सीट पर भी बरकरार रखना चाहती है।  इसी कवायद के तहत राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के सिंबल पर पार्टी ने तबस्सुम हसन को कैराना लोकसभा उपचुनाव मैदान पर उतारने का फैसला किया है वहीं बिजनौर के नूरपुर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में सपा रालोद के समर्थन से अपना प्रत्याशी उतारेगी।  

भाजपा को रोकने के लिये हर दल से हाथ मिलाने को तैयार सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कल इस सिलसिले में रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी से मुलाकात की थी। दोनों नेताओं के बीच करीब तीन घंटे तक चली इस मुलाकात के नये राजनीतिक समीकरण बनने की संभावना प्रबल हुयी।  

पार्टी सूत्रों ने आज यहां बताया कि कैराना सीट पर रालोद प्रत्याशी सपा के समर्थन से चुनावी दंगल में उतरेगा जबकि इसके बदले में रालोद बिजनौर के नूरपुर विधानसभा क्षेत्र में सपा उम्मीदवार का समर्थन करेगी। दोनों ही स्थानों पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सहयोगी दल की भूमिका निभा सकती है हालांकि सूबे की राजनीति में हाशिये पर अटकी कांग्रेस दोनों ही सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा कर सकती है।

सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने बताया कि रालोद उपाध्यक्ष के साथ मुलाकात के बाद बने नये फार्मूले के तहत कैराना में सपा नेता तबस्सुम हसन रालोद के सिंबल पर चुनाव लड़ेंगी जबकि बिजनौर के नूरपुर विधानसभा उप चुनाव में नईम उल हसन को समाजवादी पार्टी अपना प्रत्याशी बनायेगी। नईम को राष्ट्रीय लोकदल पूरा समर्थन देगी। 

चौधरी ने बताया कि सपा इस चुनाव में बसपा से नजदीकी का भी लाभ लेने के प्रयास में है। वर्ष 2009 में तबस्सुम हसन ने यहां से जीत हासिल की थी। अब एक बार फिर तबस्सुम हसन को समाजवादी पार्टी टिकट देने की तैयारी में थी मगर जयंत चौधरी से हुये समझौते के बाद तबस्सुम हसन रालोद के चुनाव चिन्ह पर यहां से किस्मत आजमायेंगी। उनके बेटे नाहिद हसन शामली के कैराना से समाजवादी पार्टी से ही विधाायक हैं।  

सपा इस सीट पर दलित, मुस्लिम व पिछड़ों के साथ रणनीति बना रही है। इनके साथ ही क्षेत्र में राष्ट्रीय लोकदल की भी तगड़ी पैठ है। उधर, भाजपा सांसद हुकुम सिंह के निधन से खाली हुई कैराना लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी की तरफ से टिकट दावेदारों में उनके बेटी मृगांका सिंह भी हैं।  कैराना व नूरपुर उपचुनाव को लेकर गठबंधन की जोड़तोड़ में कांग्रेस हाशिए पर है। स्थानीय नेता चुनाव लडऩे को उत्साहित नहीं और शीर्ष नेतृत्व से अपनी मंशा जाहिर कर चुके है। प्रदेश अध्यक्ष राजबबर का कहना है कि राहुल गांधी के कर्नाटक चुनाव में व्यस्त होने के कारण फैसला नहीं हो पाया है। कांग्रेस की पांच में से तीन विधानसभा क्षेत्रों में स्थिति मजबूत मानी जा रही है।

इस लोकसभा सीट में शामली जिले की थानाभवन, कैराना और शामली विधानसभा सीटों के अलावा सहारनपुर जिले के गंगोह व नकुड़ विधानसभा सीटें आती हैं। मौजूदा समय में इन पांच विधानसभा सीटों में चार भाजपा के पास हैं और कैराना विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी के पास है। बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ मैदान में उतरी समाजवादी पार्टी ने शामली व नकुड़ सीटें कांग्रेस को दी थीं।

वर्ष 1962 में अस्तित्व में आयी कैराना लोकसभा सीट पर अब तक 14 बार चुनाव हो चुके हैं। कांग्रेस और भाजपा दो-दो बार चुनाव जीत सकी हैं। ये सीट अलग-अलग राजनीतिक दलों के खाते में जाती रही है। कैराना लोकसभा सीट पर पहली बार हुए चुनाव में निर्दलीय यशपाल सिंह ने जीत दर्ज की थी। 1967 में सोशलिस्ट पार्टी, 1971 में कांग्रेस, 1977 में जनता पार्टी, 1980 में जनता पार्टी (सेक्युलर), 1984 में कांग्रेस, 1989, 1991 में कांग्रेस, 1996 में सपा, 1998 में भाजपा, 1999 और 2004 में राष्ट्रीय लोकदल, 2009 में बसपा और 2014 में भाजपा ने जीत दर्ज कर चुकी है। 

भाजपा के हुकुम सिंह ने निधन से यह सीट खाली हो गई है।  कैराना लोकसभा क्षेत्र में 17 लाख मतदाता हैं। जिनमें पांच लाख मुस्लिम, चार लाख पिछड़ी (जाट, गुर्जर, सैनी, कश्यप, प्रजापति और अन्य शामिल) और डेढ़ लाख वोट जाटव दलित है। एक लाख के करीब गैरजाटव दलित मतदाता हैं। कैराना सीट गुर्जर बहुल मानी जाती है। यहां तीन लाख गुर्जर मतदाता हैं, इनमें ङ्क्षहदू-मुस्लिम दोनों गुर्जर शामिल हैं। इस सीट पर गुर्जर समुदाय के उमीदवारों ने ज्यादातर बार जीत दर्ज की हैं।  

कैराना में मुस्लिम आबादी अच्छी खासी होने के बाद भी 14 लोकसभा चुनाव में महज चार बार ही मुस्लिम सांसद बने हैं। 2014 के चुनाव में भाजपा के हुकुम सिंह के खिलाफ दो मुस्लिम उमीदवार थे। सपा ने नाहिद हसन को और बसपा ने कंवर हसन को उतारा था। मुजफ्फरनगर दंगे (2013) के चलते वोटों का ध्रुवीकरण हुआ और दो मुस्लिम प्रत्याशी के होने से मुस्लिम वोट बंटने का फायदा हुकुम सिंह को मिला। 
 

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!