लाख टके का सवाल, क्या 2019 तक गठबंधन रहेगा जारी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Mar, 2018 02:24 PM

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गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव के नतीजों के बाद उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में लाख टके का सवाल तैर रहा है कि क्या 2019 के चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का गठबंधन बरकरार रहेगा। दोनो उपचुनाव में बसपा ने...

लखनऊ: गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव के नतीजों के बाद उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में लाख टके का सवाल तैर रहा है कि क्या 2019 के चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का गठबंधन बरकरार रहेगा। दोनो उपचुनाव में बसपा ने सपा उम्मीदवारों को समर्थन दिया था। बदले में सपा ने राज्यसभा में बसपा उम्मीदवार को समर्थन देने का वायदा किया है। नतीजा आने के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव बसपा अध्यक्ष मायावती से मिलने उनके घर गए। यादव पहली बार बसपा अध्यक्ष के घर गए थे। उपचुनाव के नतीजों से सपा और बसपा दोनो के नेता और कार्यकर्ता उत्साहित हैं। दोनों पार्टियों के लोग 1993 में सपा के तत्कालीन अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और बसपा संस्थापक कांशीराम में हुए समझौतों को याद कर रहे हैं। समझौते के प्रत्यक्ष गवाह और कांशीराम के सिपहसलार तथा बसपा को आर्डिनेटर रहे आर के चौधरी बताते हैं कि 1993 में दोनों के समझौते में अयोध्या मुद्दे की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।  बसपा छोड़ अब सपा में शामिल चौधरी ने बताया कि छह दिसम्बर 1992 को कल्याण सिंह के मुख्यमंत्रित्वकाल में विवादित ढांचा ध्वस्त कर दिया गया। 

कांशीराम ने रखी थी गठबंधन किए जाने की बात
कांशीराम उस दिन बस्ती में डा भीमराव अम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। वह (चौधरी) फैजाबाद के बाल्दा मोहल्ले में उसी तरह के कार्यक्रम में शामिल थे। चौधरी ने बताया कि अयोध्या में ढांचा ध्वस्त होने की खबर पाते ही कांशीराम ने कार्यक्रम समाप्त कर लखनऊ चले आए। मुझे भी उनके साथ आना पड़ा। कांशीराम ने सात दिसंबर 1992 को दिल्ली में मुलायम सिंह यादव से मिलकर गठबंधन किए जाने की बात रखी। उंतीस जून 1993 को कांशीराम ने बताया कि कमजोर और लाचारों को एकत्रित करने की उनकी मुहिम को सत्ता के बगैर मजबूती नहीं मिलेगी। इसलिए मुलायम सिंह से समझौता किया जा रहा है।  

अयोध्या के विवादित ढांचा को ध्वस्त किए जाने से आहत थे कांशीराम
उन्होंने बताया कि कांशीराम अयोध्या के विवादित ढांचा को ध्वस्त किए जाने से आहत थे। उनका मानना था कि पहले दलितों और लाचारों को प्रताडित किया गया तथा अब मुसलमानों को परेशान किया जा रहा है। उन्होंने मुझसे वकालत छोडऩे की अपील की। वकालत छोड़ते ही उन्होंने 30 जून 1993 को मुझे बसपा को कोआर्डिनेटर बना दिया। मुलायम सिंह यादव से सीटों के बंटवारे का फार्मूला तय किया गया। जिस सीट पर पिछले चुनाव (1991) में समाजवादी जनता पार्टी (सजपा) बसपा से आगे थी वहां उसका उम्मीदवार खड़ा किया गया और जहां बसपा आगे थी वहां से बसपा के उमीदवार खड़े किये गए। चौधरी ने बताया कि समझौता हो गया। बसपा को विधानसभा की कुल 425 में से 67 सीटें मिलीं। सजपा ने एक सौ से अधिक सीटें जीतीं। समझौते के बावजूद पूर्ण बहुमत नहीं मिला। बाद में कांग्रेस से समर्थन लेकर मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में 04 दिसंबर 1993 को सरकार बनी। एक सपा, एक बसपा के क्रम में मंत्रियों ने शपथ लिया। मुलायम सिंह यादव के बाद उन्होंने ही शपथ ग्रहण की थी। 

मायावती के बारे में कुछ भी नहीं बोलना चाहते चौधरी
सपा में शामिल होने के बावजूद चौधरी बसपा अध्यक्ष मायावती के बारे में कुछ भी नहीं बोलना चाहते। मायावती से मतभेद के बावजूद वह चाहते हैं कि समाज की भलाई और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हराने के लिए सपा तथा बसपा में समझौता हो। जरुरत पड़े तो इसमें कांग्रेस की भी मदद ली जाए।  उधर, भाजपा समर्थक लोगों का मानना है कि मायावती समझौते के लिए इतना शर्त रख देंगी कि सपा के लिए गठबंधन की राह आसान नहीं होगी। भाजपा के प्रति नरम रुख रखने वाले राकेश त्रिपाठी कहते हैं कि गठबंधन कार्यक्रमों और समान विचारधारा वालों में होता है। केवल सत्ता के लिए गठबंधन न तो जनता के हित में है और न ही यह ज्यादा दिन चलता है। बहरहाल, गठबंधन अभी भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इसे लेकर चर्चा जोरों पर है। हर गली, चौराहे पर लोग कल से ही चटखारे लेकर इसपर बातें कर रहे हैं। 

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