सोनिया के गढ़ में अखिलेश की धूम!

Edited By ,Updated: 23 Feb, 2017 01:09 PM

akhilesh gandhi bastion boom

कांग्रेस परिवार के ‘मुख्य गढ़’ उंगलियों पर गिने जा सकते हैं।

लखनऊ:कांग्रेस परिवार के ‘मुख्य गढ़’ उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। इनमें से एक सोनिया गांधी का संसदीय क्षेत्र रायबरेली है। आज इस सीट की छह विधानसभाओं पर वोटिंग होनी है, लेकिन दिखाई पड़ रही जमीनी तस्वीर से साफ है कि यहां कांग्रेस के लिए हालात बहुत ही बदतर हैं और ज्यादातर वोटरों के बीच युवा अखिलेश यादव की धूम है और अगर ऐसा है, तो इसकी एक-दो नहीं, बल्कि अनगिनत वजह हैं। कई उदाहरण हैं। आज हम आपको ऐसे ही कुछ उदाहरणों के बारे में बताएंगे, जिनको पढ़कर साफ हो जाएगा कि कांग्रेस के उसके पुराने वोटर उससे क्यों खफा हो चले हैं।

रायबरेली की 15 फीसदी से भी कम आबादी शहरी
अब जरा यहां के अजय सिंह राठौड़ की मां की कहानी ही ले लीजिए। कुछ महीने पहले उनके दांतों में समस्या थी। जब 22 साल के अजय उन्हें डॉक्टर के पास लेकर गए, तो उसने कहा कि बहुत ज्यादा उच्च स्तरीय फ्लोराइड का पानी पीने के कारण उनके दांत बहुत ही खराब हो चुके हैं। अजय ने बताया कि उनकी कालोनी में रह रहे कुछ लोगों को ठीक ऐसी ही समस्या है। अब जबकि रायबरेली में वोटिंग होने जा रही है, तो इससे पहले जिले के पुराने वोटरों ने साफ व सुरक्षित पानी, रोजगार, बेहतर जीवन स्तर को बड़ा चुनावी मुद्दा बताया। यहां तक कि शहर की कुछ कालोनियों में भी नागरिकों को मिल रहा पानी पूरी तरह से साफ नहीं है। और जब आप अंदर की ओर जाएंगे, तो हालात और बदतर हो जाते हैं। महत्वपूर्ण बात यह कि रायबरेली की 15 फीसदी से भी कम आबादी शहरी है।

यहां नहीं हुआ औद्योगिक विकास
गांधी परिवार का गढ़ रायबरेली अभी भी किसी वी.आई.पी. के सबसे कम विकसित संसदीय क्षेत्रों में से एक बना हुआ है। हालांकि, राज्य सरकारें भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं, लेकिन बेहतर जीवन जीने का सपना पाले यहां के युवाओं के पास सीमित विकल्प हैं क्योंकि बड़ी संख्या में यहां के वोटर किसान या मजदूर हैं। एक निजी स्कूल में टीचर के बेटे और परिवार के सात सदस्यों के साथ रहने वाले अजय कहते हैं कि मैं आगे की पढ़ाई के लिए बाहर जाना पसंद करूंगा।  यहां पर कोई भी उद्योग नहीं है। यहां पर औद्योगिक विकास नहीं हुआ है। अगर हम बाहर जाते हैं, तो हम बेहतर जिंदगी जी सकेंगे। अजय की तरह ही ऊंचाहार में 22 साल सचिन एक और छात्र हैं, जो कहते हैं कैसे बाकी शहरों की तुलना में रायबरेली का कितना कम विकास हुआ है।

रायबरेली में ज्यादातर वोटर हैं कांग्रेस से खफा
वैसे यहां के लोग सांसद सोनिया गांधी से ज्यादा नाखुश हैं और इसका सबूत उन्होंने साल 2012 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में ही दे दिया था, जब कांग्रेस छह में से एक भी विधानसभा सीट पर जीत हासिल नहीं कर सकी थी। दूसरी ओर, युवाओं के बीच अखिलेश यादव की लोकप्रियता करीब-करीब बरकरार है। ऑटो चलाने वाले 22 साल के कौशल कुमार कहते हैं कि उनके परिवार के सभी पांच लोग अखिलेश का समर्थन कर रहे हैं। इस किसान के बेटे ने कहा कि दोबारा मौका मिलने के लिए अखिलेश ने बहुत अच्छा विकास किया है। राज्य की खामियां बताते हुए  उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश इतना ज्यादा बड़ा है कि किसी के लिए भी पांच साल में इसे बदलना बहुत ही मुश्किल काम है।

भाजपा और बसपा को मिल रहा फायदा
कौशल ने सवाल उठाते हुए कहा कि सत्तर जिलों में हर खामी को दूर करना केवल पांच साल में कैसे संभव है। वहीं, शुरूआती दो साल में उनके पिता और चाचा ने उन्हें काम ही नहीं करने दिया। मुझे पूरा भरोसा है कि अगर वह फिर से सत्ता में आते हैं तो अखिलेश अगले पांच साल में और भी ज्यादा काम करेंगे। हालांकि अखिलेश की धूम के बावजूद गठबंधन के लिए कुछ मुश्किलात भी हो सकती हैं क्योंकि पांच में से दो सीटों पर इनके बीच कोई समझौता नहीं हो सका। ऊंचाहार और सारेनी दोनों जगहों पर दोनों पार्टियों ने उम्मीदवार उतारे हैं और यह दोनों ही एक-दूसरे के खिलाफ प्रचार कर रहे हैं। ‘उत्तर प्रदेश को ये साथ पसंद है, लेकिन ऊंचाहार को हाथ पसंद है’ कांग्रेस का ऊंचाहार में नारा है, जो वोटरों को भ्रमित कर रहा है और इसका फायदा भाजपा और बसपा को मिल रहा है।
 

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