गिरिडीह में महिलाओं ने संभाली जल प्रबंधन की जिम्मेदारी, NGO की मदद से ठीक कराए सूखे कुएं

Edited By Jagdev Singh,Updated: 23 Jun, 2019 01:44 PM

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झारखंड के गिरिडीह जिले में गर्मी के दिनों में कई इलाकों में बमुश्किल पानी का जुगाड़ होता है। बावजूद इसके गिरिडीह के कई मोहल्ले ऐसे भी हैं, जहां लोगों को पर्याप्त मात्रा में शुद्ध पेयजल मिल रहा है। एक स्वयंसेवी संस्था और इलाके के लोगों की पहल ने...

गिरिडीह: झारखंड के गिरिडीह जिले में गर्मी के दिनों में कई इलाकों में बमुश्किल पानी का जुगाड़ होता है। बावजूद इसके गिरिडीह के कई मोहल्ले ऐसे भी हैं, जहां लोगों को पर्याप्त मात्रा में शुद्ध पेयजल मिल रहा है। एक स्वयंसेवी संस्था और इलाके के लोगों की पहल ने जलसंकट का निदान कर दिया है। वहीं यहां जलप्रबंधन की पूरी जिम्मेदारी मोहल्ले की महिलाओं ने संभाल ली है। जल स्त्रोतों के समीप वर्षा जल संरक्षण की व्यवस्था से अनवरत पानी मिल रहा है। इससे बेकार कुएं भी अब लोगों की प्यास बुझा रहे हैं।

गिरिडीह जिले के इस इलाके में सामाजिक परिवर्तन संस्थान संस्था ने जल प्रबंधन परियोजना पर काम शुरू किया है। इसके तहत बंद पड़ी डीप बोरिंग व सूखे कुओं की मरम्मत कराई गई। इनके पास वर्षा जल संरक्षण के लिए विशेष प्रकार के गढ्डे खोदे गए। इससे पानी का लेबल कुओं और बोरिंग में ठीक हो गया। गर्मी में भी अब इनमें पानी उपलब्ध होता है। कुओं व बोरिंग से निकलने वाले पानी के शोधन के लिए वाटर फिल्टर प्लांट लगाया गया। इसके साथ ही शुद्ध पेयजल की व्यवस्था हो गई। एक मोहल्ले में फिल्टर प्लांट लगाने में करीब डेढ़ लाख रुपये खर्च हुए हैं। इसमें 20 प्रतिशत सहयोग मोहल्ले के लोगों का रहा। शेष राशि संस्था ने उपलब्ध कराई। जलापूर्ति व्यवस्था का प्रबंधन हर वार्ड में बनी महिलाओं की कमेटी करती है।

सामाजिक परिवर्तन संस्थान ने 2004 में गिरिडीह के वार्ड नंबर एक, 2, 4 और 20 के कई हिस्सों में व्याप्त जलसंकट को देख उसके समाधान की पहल की। संस्थान को नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया नई दिल्ली से इसके लिए वित्तीय सहयोग मिला। 20 प्रतिशत राशि मोहल्ले के लोगों से ली गई। वार्ड एक और दो में विधायक मद से पूर्व में डीप बोरिंग हुई थी, जो बंद हो गई। उसे दुरुस्त कराया गया। वार्ड चार और 20 में बंद दो कुओं की मरम्मत कराई गई। डीप बोरिंग और कुओं के पास वाटर फिल्टर प्लांट लगाया गया, ताकि पानी का शोधन हो सके। हर प्रोजेक्ट में करीब डेढ़ लाख रुपये की लागत आई। इस व्यवस्था के तहत जलापूर्ति शुरू की गई। चारों वार्ड के करीब एक हजार लोगों को जलापूर्ति हो रही है।

हर वार्ड में जलकमेटी का गठन किया गया, इनकी सदस्य मोहल्ले की जिम्मेदार महिलाओं को बनाया गया। जो पूरे प्लांट का संचालन करती हैं। पानी के एवज में हर परिवार से रोज दो रुपये लिए जाते हैं। जो प्लांट के रखरखाव में खर्च होता है। पानी की निर्बाध आपूर्ति हो इसके लिए कुओं व डीप बोरिगं के पास सोख्ता गढ्डा बनाया गया। इसके माध्यम से वर्षा जल का संरक्षण होता है। इससे जलस्तर ठीक रहता है। वार्ड एक की सुरभि देवी ने बताया कि पहले हमेशा पानी का संकट रहता था। अब घर के पास ही पर्याप्त शुद्ध पेयजल उपलब्ध हो रहा है।

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