Edited By Nitika,Updated: 25 Feb, 2020 11:54 AM
बिहार की अल्पसंख्यक, धर्मनिरपेक्ष सामाजिक संस्थाओं और जनवादी संगठनों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से एनपीआर की प्रक्रिया आरंभ नहीं करने की मांग की है।
पटनाः बिहार की अल्पसंख्यक, धर्मनिरपेक्ष सामाजिक संस्थाओं और जनवादी संगठनों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से एनपीआर की प्रक्रिया आरंभ नहीं करने की मांग की है।
धर्मनिरपेक्ष सामाजिक संस्थाओं और जनवादी संगठनों के प्रतिनिधियों ने संयुक्त रूप से सोमवार को संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) दरअसल एनपीआर और एनआरसी से जुडा हुआ है और ये तीनों मिलकर घातक त्रिकोण बनाते है। उन्होंने दावा किया कि इस त्रिकोण से देश के करोडों गरीबों, दलितों, पिछड़ों और बच्चों की नागरिकता खतरे में पड़ सकती है। इसलिए केंद्र सरकार जनता की भावनाओं का आदर करते हुए और संवैधानिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए देशहित में सीएए को वापस ले।
धर्मगुरुओं एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा जब से देशभर में एनआरसी लागू करने की बात चली है और सीएए बना है तब से देश का माहौल खराब हुआ है। देश को धर्म के नाम पर बांटने की कोशिश की जा रही है जिन्हें किसी भी हाल से स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते रहे हैं कि बिहार में एनआरसी लागू नहीं होगा। मुख्यमंत्री एनपीआर के वर्तमान स्वरूप को लेकर भी असंतोष जाहिर कर चुके हैं। ऐसे में एनपीआर की प्रक्रिया पर अविलंब रोक लगाने का वह स्पष्ट आदेश जारी करें।
धर्मगुरुओं एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि एनपीआर दरअसल एनआरसी की पहली सीढी है। देशभर में पहली अप्रैल से एनपीआर पर काम शुरु होने वाला है। उन्होंने विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं से अपील की कि वे बिहार विधानमंडल के वर्तमान सत्र के दौरान एनपीआर और एनआरसी के खिलाफ आवाज बुलंद करें। साथ ही, धर्मगुरुओं एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया कि वे सदन में केरल और पंजाब की तरह एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पारित करवाए।