Edited By prachi,Updated: 25 May, 2019 03:35 PM
कभी बिहार की सत्ता में कांग्रेस का वर्चस्व था, लेकिन बदलते समय के साथ लोगों की आकांक्षाओं को पहचानने में कांग्रेस चूक गई और इस बार के लोकसभा चुनाव में वह महज एक सीट पर सिमटकर रह गई। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल...
पटनाः कभी बिहार की सत्ता में कांग्रेस का वर्चस्व था, लेकिन बदलते समय के साथ लोगों की आकांक्षाओं को पहचानने में कांग्रेस चूक गई और इस बार के लोकसभा चुनाव में वह महज एक सीट पर सिमटकर रह गई।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) और विकासशील इंसान पार्टी(वीआईपी) शामिल है। तालमेल के तहत राजद के खाते में 20 सीटें गई थी, जिसमें से उसने एक आरा सीट भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के लिए छोड़ दी थी। कांग्रेस ने 09, हम ने 03 , रालोसपा ने 05 और वीआईपी ने 03 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। 9 सीटों में से कांग्रेस केवल किशनगंज सीट पर जीत हासिल पाई हैं।
बिहार में 1990 का दशक पिछड़ा वर्ग के उभार के लिए जाना जाता है। इस दशक में जब मंडल राजनीति ने जोर पकड़ी तो कांग्रेस ऊहापोह में रही, न तो वह सवर्णों का खुलकर साथ दे पाई और न ही पिछड़े और दलित समुदाय को साध पाई। इसी दौरान लालू प्रसाद यादव, राम विलास पासवान, नीतीश कुमार जैसे नेताओं के राजनीतिक कद को नया आकार मिला। इस बदलाव के दौर से पहले तक बिहार की सत्ता में कांग्रेस का ही वर्चस्व था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को महज एक सीट से संतुष्ट होना पड़ रहा है।