उत्तराखंड : कांग्रेस ने पार्टी संविधान का उल्लंघन कर खोला था चुनावी बैंक खाता

Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Feb, 2018 04:28 PM

uttarakhand congress didnt followed constitution

एनएच-74 घोटाले की जांच कर रही एसआईटी के रडार पर आए प्रदेश कांग्रेस के चुनावी बैंक खाते से जुड़ी कई दिलचस्प जानकारियां धीरे-धीरे सामने आ रही हैं। इस खाते में धनराशि जमा करवाने या आहरित करवाने में नियम-कानून का उल्लंघन हुआ या नहीं, यह तो एसआईटी की...

देहरादून/ब्यूरो। एनएच-74 घोटाले की जांच कर रही एसआईटी के रडार पर आए प्रदेश कांग्रेस के चुनावी बैंक खाते से जुड़ी कई दिलचस्प जानकारियां धीरे-धीरे सामने आ रही हैं। इस खाते में धनराशि जमा करवाने या आहरित करवाने में नियम-कानून का उल्लंघन हुआ या नहीं, यह तो एसआईटी की जांच में पता चलेगा। लेकिन, इतना तय है कि इसके संचालन में कांग्रेस पार्टी के संविधान का उल्लंघन जरूर हुआ है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष के बजाय खाते के संचालन का जिम्मा अन्य दो पदाधिकारियों को सौंपे जाने से पहले उन प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया, जो पार्टी संविधान में शामिल हैं।भारत निवार्चन आयोग की गाइड-लाइन के तहत प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने 16 दिसम्बर 2016 को विधानसभा चुनाव के लिए प्रदेश कांग्रेस ने नेशविला रोड स्थित स्टेट बैंक की शाखा में अपना नया खाता खोला था।

 

खाता खुलने के महज एक महीने में ही इस खाते में 11 चेक व 46 फंड ट्रांसफर के जरिये इस खाते में चंदे के रूप में 5.45 करोड़ रुपये डाले गए थे। यह पैसा कहां से आया, इसकी जांच एसआईटी कर रही है।

 

इस सम्बंध में एसआईटी एक बार तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय से पूछताछ कर चुकी है। इसके बाद से उत्तराखंड की सियासत में तूफान मचा हुआ है। जानकारों की मानें तो इस खाते के संचालन में कांग्रेस के संविधान का उल्लंघन हुआ है। दरअसल, कांग्रेस पार्टी का अपना एक संविधान है जिसके तहत ब्लाक कांग्रेस कमेटी से लेकर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी, एआईसीसी की गतिविधियां संचालित होती हैं।

 

कांग्रेस के संविधान में प्रावधान है कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी का बैंक खाता पीसीसी के अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष के संयुक्त हस्ताक्षरों से संचालित होगा। यदि अति व्यस्तता या अन्य किसी ठोस कारणों से अध्यक्ष या कोषाध्यक्ष खाते का संचालन करने में असमर्थ हों, तो उनकी जगह पीसीसी के अन्य पदाधिकारियों को यह जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। लेकिन, उसका प्रस्ताव बाकायदा पीसीसी की बैठक बुलाकर उसमें पारित करना होगा।

 

इस मामले में कांग्रेस संविधान के इसी नियम का उल्लंघन किया गया। हुआ यह कि तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने इस खाते की जिम्मेदारी दो कांग्रेसियों सुरेन्द्र सिंह रांगड़ और कमल सिंह रावत को सौंप दी थी। इससे सम्बंधित प्रस्ताव पारित करने के लिए न तो पीसीसी की बैठक बुलाई गई और न ही प्रस्ताव पारित किया गया। स्टेट बैंक ऑफ  इंडिया की सम्बंधित शाखा को किशोर ने अपने स्तर से ही पत्र लिखकर खाते के संचालक बदलवा लिए थे।

 

खाता संचालक बनाने से पहले सौंपा संगठन में दायित्व

 

जिन दो लोगों सुरेन्द्र सिंह रांगड़ और कमल सिंह रावत को पीसीसी के चुनावी बैंक खाते के संचालन की जिम्मेदारी सौंपी गई, उन्हें उस समय आनन-फानन प्रदेश कांग्रेस कमेटी का पदाधिकारी बनाया गया। सुरेन्द्र सिंह रावत को पीसीसी का सचिव, तो कमल सिंह रावत को संगठन सचिव का दायित्व सौंपा गया।

दिलचस्प बात यह है कि ये दोनों ही पद एआईसीसी की अप्रूव्ड लिस्ट में नहीं हैं और न ही एआईसीसी से इसकी स्वीकृति ली गई। यह भी हुआ कि कमल सिंह रावत तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के पीआरओ थे। उनका इस्तीफा दिलवाकर उन्हें संगठन सचिव बनाया गया। साफ है कि सोची समझी रणनीति के तहत ये सारी कार्रवाइयां हुईं।

 

पीसीसी चीफ को है पूरा अधिकार : मुख्य प्रवक्ता  

इस सम्बंध में पूछे जाने पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुख्य प्रवक्ता मथुरा दत्त जोशी ने कहा कि पीसीसी के खातों के संचालन का दायित्व अन्य पदाधिकारियों को सौंपे जाने का पूरा अधिकारी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को है। वे अपने विवेक से किसी भी पदाधिकारी को यह जिम्मेदारी सौंप सकते हैं। किशोर उपाध्याय ने भी अपने इस अधिकार का उपयोग किया और सुरेन्द्र सिंह रांगड़ व कमल सिंह रावत को चुनावी बैंक खाते का संचालक बनाया। इस सम्बंध में किशोर उपाध्याय ने स्टेट बैंक को पत्र भेजा था।

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