...जब भीषण तबाही देख सुप्रिया रतूड़ी ने कर डाली केदारनाथ आपदा पर पीएचडी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 06 Feb, 2018 03:08 PM

lady did phd on kedarnath tragedy

केदारनाथ आपदा पर पीएचडी! है न ताज्जुब की बात। केदारनाथ हादसे को जिसने देखा, भोगा है, वह आज भी उस घटना को याद करके कांप उठता है। इस हादसे में बहुत से लोगों ने ...

देहरादून/ ब्यूरो।केदारनाथ आपदा पर पीएचडी! है न ताज्जुब की बात। केदारनाथ हादसे को जिसने देखा, भोगा है, वह आज भी उस घटना को याद करके कांप उठता है। इस हादसे में बहुत से लोगों ने अपना सब कुछ खो दिया था। लोग वर्ष 2013 में केदारनाथ में हुई तबाही से आज भी उबर नहीं पाए हैं।

 

केदारनाथ में हुई भीषण तबाही को देखकर स्वतंत्र पत्रकार सुप्रिया रतूड़ी ने 'केदरानाथ आपदा पर माडिया के विश्लेषण' को लेकर पीएचडी करने की ठान ली थी। अब उनकी पीएचडी पूरी हो गई है। उन्हें  इसके लिए प्रविजन सर्टिफिकेट मिल चुका है।

सुप्रिया रतूड़ी चमोली के रतूड़ा गांव की रहने वाली हैं। केदरानाथ की विभीषिका को मंदाकिनी घाटी ने सबसे ज्यादा झेला है। यहीं से उसके मन में कौंधा कि ऐसी कठिन परिस्थितियों में मीडिया जिस तरह भूमिका निभाता है, उस पर ही क्यों न थीसिस तैयार की जाए।आखिरकार, काफी मेहनत करके उन्होंने अपनी थीसिस का प्रारूप तैयार किया। डॉ. सुशील उपाध्याय के मार्गदर्शन में प्राकृतिक आपदाओं के संदर्भ में जनसंचार माध्यमों की भूमिका पर अपना शोध तैयार किया। आपदा पर सात चैप्टरों में यह थीसिस तैयार की गई है।

सुप्रिया का कहना है कि प्राकृतिक आपदा के समय या उसके बाद की स्थितियों में राहत कार्य पहुंचाने और आपदा से घिरे लोगों तक वास्तविक जानकारी पहुंचाने में मीडिया की बड़ी भूमिका होती है। मीडिया का काम सरकार, प्रशासन, सेना, पुलिस और राहत कार्यों में जुटी संस्थाओं के लिए महत्वपूर्ण होता है। वह अपनी थीसिस मे इन बातों का समावेश करके लोगों के सामने यह लाना चाहती थीं कि मीडिया किस तरह ऐसे समय में मददगार हो सकता है या मीडिया की भूमिका किस तरह हो सकती है।

 

अपने शोध में उन्होंने इन पहलुओं पर भी ध्यान दिया कि मीडिया किस स्तर पर ऐसे समय में अपने कार्यों को अंजाम देने में सक्षम है। शोध के दौरान उन्होंने पाया कि अखबारों, टीवी चैनलों में कुछ पत्रकारों को आपदा के समय रिपोर्टिंग का प्रशिक्षण देना चाहिए। आम तौर  पर यह देखने में आता कि आपदा के समय अखबार या चैनल अपने कुछ रिपोर्टर्स को कवरेज करने के लिए घटना स्थल पर भेजता है। उनमें से कुछ लोग ऐसी विषम परिस्थितियों में कार्य करने में दक्ष नहीं होते हैं। इसलिए अनुभवी पत्रकारों को आपदा प्रबंधन विशेषज्ञों और सेना पुलिस के जरिए प्रशिक्षण लेना चाहिए। ऐसे मौकों पर संवेदशीलता की जरूरत कुछ ज्यादा होती है।

सुप्रिया रतूड़ी का कहना है कि अपने शोध कार्य के दौरान उन्होंने दिल्ली और देहरादून के विभिन्न अखबारों,  पत्रिकाओं का अध्ययन किया। टीवी चैनल्स की खबरों को देखा। उनका विश्षेलण किया। वह यह भी बताता है कि केदरनाथ आपदा के संदर्भ में यह पहली पीएचडी है। केदरानाथ में 2013 को हुई भीषण तबाही के बाद जिस तरह अखबारों और टीवी चैनल्स पर खबरें प्रचारित हुईं, उसे पढ़ने और देखने के बाद उन्हें आपदा को लेकर पीएचडी करने का विचार आया।

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