Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Jul, 2017 05:31 PM
‘विधवा’ शब्द की कल्पना भी किसी विवाहिता के मन मस्तिष्क को विचलित करने के लिए काफी है मगर...
देवरिया: ‘विधवा’ शब्द की कल्पना भी किसी विवाहिता के मन मस्तिष्क को विचलित करने के लिए काफी है मगर पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया, गोरखपुर, कुशीनगर समेत पड़ोसी राज्य के कुछ जिलों में गछवाहा समुदाय की औरतें पति के जिंदा होते हुए भी विधवाओं का जीवन जीती है। मान्यतानुसार अपनी पति की सलामती के लिए ये सुहागने मई से लेकर जुलाई तक विधवा का जीवन बसर कर सदियों पुरानी अनूठी प्रथा का पूरी शिद्दत से पालन करती हैं।
दरअसल गछवाहा समुदाय के पुरूष साल के 3 महीने यानी मई से जुलाई तक ताड़ी उतारने का काम करते है। अपनी इसी कमाई से वे अपने परिवार का जीवन यापन करते है। ताड़ के पेड़ से ताड़ी निकालने का काम काफी जोखिम भरा माना जाता है। इसीलिए 50 फिट से ज्यादा ऊंचाई के सीधे ताड़ के पेड़ से ताड़ी निकालने के दौरान कई बार जाने भी चली जाती हैं।
जिस पर इस समुदाय की महिलाएं देवरिया से 30 किलोमीटर दूर गोरखपुर जिले के तरकुलहां देवी के मंदिर में अपनी सुहाग की निशानियां रख कर सलामती की मन्नतें मांगती हैं। इन 3 माह तक ये औरतें अपने घरों में उदासी का जीवन जीती हैं।
गछवाहा समुदाय के बारे में जानकारी रखने वाले जगदीश पासवान ने बताया कि ताड़ी का काम समाप्त होने के बाद तरकुलहां देवी मंदिर में समुदाय की औरतें नाग पंचमी के दिन इकट्ठा होती है। इक्ट्ठा होकर पूजा करती है और सामूहिक गौठ का आयोजन करती हैं। जिसमें सधवा के रूप में श्रंगार कर खाने-पीने का आयोजन कर मंदिर में आशीर्वाद लेकर अपने परिवार में प्रसन्नता पूर्वक जाती हैं।
पासवान ने बताया कि गछवाहा समुदाय वास्तव में पासी जाति से होते हैं और सदियों से यह तबका ताड़ी उतारने के काम में लगा है हालांकि अब इस समुदाय में भी शिक्षा का स्तर बढता जा रहा है और युवा वर्ग इस पेशे से दूर हो रहे हैं।