आखिर कितना रंग दिखाएगी माया की सोशल इंजीनियरिंग

Edited By ,Updated: 16 Feb, 2017 12:07 PM

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यूपी में पहले 2 चरणों के मतदान के बाद बहुजन समाज पार्टी सकते की स्थिति में है।

लखनऊ:यूपी में पहले 2 चरणों के मतदान के बाद बहुजन समाज पार्टी सकते की स्थिति में है। सबसे ज्यादा मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारने वाली मायावती दावा कर रही हैं कि बसपा के पक्ष में मुस्लिम मतदाताओं ने साइलैंट वोटिंग की है लेकिन हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है। पहले चरण के मतदान में वैस्ट यू.पी. के जिन जिलों में मतदान हुआ उन जिलों को मायावती का दुर्ग माना जाता रहा है। गाजियाबाद, नोएडा, बागपत, मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ में तो 2007 में मायावती के नाम का डंका बजा था और जब उनकी सरकार बनी थी तो उसमें सबसे ज्यादा योगदान इन्हीं जिलों से आया था। दूसरे चरण में जिस बिजनौर जिले में बुधवार को वोटिंग हुई है वहां तो बसपा ने कभी 7 विधानसभा सीटें जीती थीं। ऐसे में मायावती के लिए पहले 2 चरण का मतदान बहुत अहम था लेकिन अगर ग्राऊंड रिपोर्टिंग की बात करें तो बसपा को इस इलाके में इस बार धक्का लग सकता है।

वैस्ट के जिन जिलों में भी बसपा के विधायक हैं वे इस बार तिकोने संघर्ष में फंस गए हैं। इसका सबसे बड़ा नुक्सान यह हुआ है कि कहीं भी वे सीधे लड़ाई में नहीं हैं और दूसरे या तीसरे नंबर की लड़ाई लड़ते नजर आ रहे हैं। इसका सीधा-सा मतलब यह है कि मुस्लिम वोटरों को मायावती में अपना मुस्तकबील नहीं नजर आ सका। मुस्लिम वोटरों की पहली पसंद साइकिल ही बनी हुई है। राजनीतिक विश्लेषकों का तो यह कहना है कि मायावती ने 97 मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारकर जो नई तरह की सोशल इंजीनियरिंग गढऩे की कोशिश की थी वह रंग लाती नजर नहीं आ रही है  बल्कि इसकी विपरीत प्रतिक्रिया हो रही है। वैस्ट यू.पी. में मुजफ्फरनगर दंगे व कुछ अन्य इस तरह की अन्य सांप्रदायिक घटनाओं की वजह से बसपा का बेस वोट बैंक दलित भी खिसका है। कुछ जगहों पर इन मतों में बंटवारा नजर आ रहा है। यही नहीं अति पिछड़ा वर्ग भी इस बार भाजपा को वोट देता नजर आ रहा है।

चरण के हिसाब से बदल रही रणनीति
मायावती ने प्रशांत किशोर की तरह किसी रणनीतिकार को भी नहीं नियुक्त किया है। वह खुद ही सारी रणनीति बनाती हैं और अब नजर आ रहा है कि हर चक्र के हिसाब से उनकी रणनीति बदल रही है। पहले चक्र में प्रचार करते हुए मायावती ने कहा था कि अगर हमें दलित व मुस्लिम वोट मिल जाएं तो हमें जीतने से कोई नहीं रोक सकता लेकिन अब वह कह रही हैं कि हम विकास कराएंगे। यही वजह है कि अब मायावती ने दलित-मुस्लिम ट्रैक को बदलने की शुरूआत कर दी है। अब उनके भाषणों में कल्याणकारी योजनाओं का कुछ वैसा ही पुट नजर आ रहा है जैसा कि स्व. जयललिता ने पिछली बार किया था। जया ने अम्मा रसोई व ऐसी ही कुछ और कल्याणकारी योजनाओं के बल पर विधानसभा चुनाव जीतकर रिकार्ड बनाया था। मायावती 97 मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारने के बाद भी नारा दे रही हैं- राम का दोस्त रहमान है, यू.पी. की यही पहचान है।

मैनीफैस्टो न सही चार्टर तो आया
बसपा के बारे में प्रचलित रहा है कि वह कभी चुनावी घोषणा पत्र जारी नहीं करती लेकिन इस बार उसने 14 बिंन्दुओं वाला चार्टर जारी किया है। इस चार्टर में कहा गया है कि किसानों के एक लाख रुपए तक के लोन को माफ कर दिया जाएगा। स्कूल के बच्चों को अंडे व दूध का ब्रेकफास्ट दिया जाएगा। जेलों में बंद बेगुनाह लोगों को जल्द से जल्द बाहर निकलवाने की बात भी मायावती इसलिए कर रही हैं जिससे कि वोटरों के मन को जीता जा सके। मायावती कह भी चुकी हैं कि वे स्मारक बनवाने की बजाय विकास कार्यों पर ज्यादा फोकस करेंगी। मायावती के समर्थक इस चार्टर को वोटरों में बंटवा रहे हैं। इसमें युवाओं को सीधे शिक्षा देने की बात कही गई है। शिक्षा मित्र और बी.टी.सी. जैसे प्रलोभन दिए जा रहे हैं। 2007 में मायावती ने कहा था कि वह उन सभी 22000 पुलिसकर्मियों की नियुक्ति को रद्द कर देंगी जो उनसे पहले की सपा सरकार के दौरान भर्ती हुए थे। ऐसा ही मायावती ने किया भी उन्हें इसका खमियाजा भुगतना पड़ा जब 2012 में वह बुरी तरह हारीं।

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