कहीं चौबे से दुबे न बन जाए भाजपा!

Edited By ,Updated: 21 Jan, 2017 03:57 PM

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राजनीति जो न कराए थोड़ा! लेकिन इसे करने के फेर में कभी-कभी छब्बे बनने निकले चौबे जी दुबे भी बन जाते हैं।

लखनऊ: राजनीति जो न कराए थोड़ा! लेकिन इसे करने के फेर में कभी-कभी छब्बे बनने निकले चौबे जी दुबे भी बन जाते हैं। पहले भी ऐसा हुआ है। और आगे भी न जाने कितनी बार होगा। बात यह है कि बनिए- ब्राह्मणों के ‘सगे’ का दम भरने वाले पिछले काफी लंबे समय से उत्तर प्रदेश में अपना ‘झंडा गाड़ने’ के लिए गैर-यादव ओ.बी.सी. और दलित वर्ग को लुभाने में लगे थे। जी हां, हम बात भाजपा की ही कर रहे हैं लेकिन अब आहट कुछ ऐसी मिल रही है कि इस फेर में भाजपा कहीं अपना मुख्य वोट बैंक न गंवा दे। मतलब तस्वीर यह कह रही है कि गैर-यादव ओ.बी.सी. और दलितों के चक्कर में कहीं अगड़े और जाट उसके हाथ से न निकल जाएं।

जाटों ने भाजपाइयों के खिलाफ विरोध का बिगुल बजा दिया
अगर पश्चिम उत्तर प्रदेश से छन-छन कर आ रही खबरों पर भरोसा किया जाए, तो ब्राह्मणों और बनियों ने महागठबंधन के बारे में सोचना-समझना शुरू कर दिया है। ऊपर से कोढ़ में खाज वाली बात यह कि दलित खेमा पूरी मजबूती के साथ ‘बहन जी’ के पीछे खड़ा दिखाई पड़ रहा है, तो गैर-यादव ओ.बी.सी. वर्ग के वोट भाजपा, सपा और बसपा तीनों में बंटते दिखाई पड़ रहे हैं। पश्चिम उत्तर प्रदेश में ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है कि आपको दिखाई पड़ेगा कि ज्यादातर जाटों ने बैनरों के जरिए भाजपाइयों के खिलाफ विरोध का बिगुल बजा दिया है और इसका पूरा श्रेय जाता है नोटबंदी को।  वास्तव में आपको ऐसे बैनर एक नहीं, अनगिनत जगह मिल जाएंगे।

वोट बैंक वाले जाट किसान भाजपा के खिलाफ
वैसे आपको याद दिला दें कि यह जाट ही थे, जिन्होंने मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक दंगों के बाद पश्चिम उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत में ‘हिंदू प्रतिक्षेप’ की लहर की अगुवाई की थी। और जैसा कि आप सभी जानते हैं कि यह प्रतिक्षेप ही था, जिसने साल 2014 लोकसभा चुनाव के परिणाम को बहुत ज्यादा प्रभावित किया था। कुछ दिन पहले की ही बात है जब एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि चीनी मिलों के भुगतान फंसने, फसलों के न्यूनतम समर्थन स्थिर होने, फसलों के लिए कर्ज बढ़ने और नोटबंदी के चलते रबी की फसल की बुआई के सीजन पर बहुत असर पड़ा है। नतीजा यह है कि इस क्षेत्र में प्रभावी वोट बैंक वाले जाट किसान भाजपा के खिलाफ हो चले हैं। ये इतने ज्यादा खफा हैं कि करीब-करीब सभी खाप पंचायतों ने यह घोषणा कर दी है कि वे इस बार भाजपा को हराने के लिए वोट देंगे।

सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने के लिए मोदी सरकार को खूब कोसा
जानकारी के अनुसार 8 जनवरी को जाट आरक्षण संघर्ष समिति के तत्वावधान में मुजफ्फरनगर के खराद में उत्तर प्रदेश और हरियाणा के 35 खाप नेता और हजारों जाट इकट्ठा हुए। यही यह घोषणा की गई कि वह भाजपा को दोबारा वोट नहीं देंगे।महत्वपूर्ण बात यह थी कि इस रैली में मुस्लिम जाटों ने भी हिस्सा लिया और यहां दिए गए भाषणों में सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने के लिए मोदी सरकार को खूब कोसा गया। हालांकि, इस रैली में मुख्य रूप से जाटों के आरक्षण से इंकार पर चिंता जताई गई लेकिन इस दौरान समुदाय के नेताओं के बीच ज्यादातर समय बात कृषि के क्षेत्र में आ रही समस्याओं, विकास की कमी का दिखाना मुजफ्फरनगर दंगों के बाद के हालात को लेकर हुई।

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