सपा-कांग्रेस गठबंधन के साइड इफैक्ट

Edited By ,Updated: 25 Jan, 2017 10:14 AM

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यूपी में जिस तरह से सपा व कांग्रेस के बीच गठबंधन हुआ है उसने न केवल अखिलेश यादव व राहुल गांधी जैसे शीर्ष नेताओं की हालत खराब कर दी थी बल्कि इन पार्टियों से टिकट मांग रहे नेताओं की स्थिति तो ऐसी हो गई थी कि...

लखनऊ: यूपी में जिस तरह से सपा व कांग्रेस के बीच गठबंधन हुआ है उसने न केवल अखिलेश यादव व राहुल गांधी जैसे शीर्ष नेताओं की हालत खराब कर दी थी बल्कि इन पार्टियों से टिकट मांग रहे नेताओं की स्थिति तो ऐसी हो गई थी कि न जीते बन रहा था न मरते। किसी को कुछ नहीं सूझ रहा था कि क्या किया जाए। कुछ प्रत्याशियों ने दो दिन में ही तीन-तीन बार पार्टियां बदल लीं। पार्टी के प्रति निष्ठा गई भाड़ में बस टिकट चाहिए। यही नहीं ऐसा रायता फैला कि जो रात में टिकट मिलने का दावा कर रहा था सुबह के समय पैदल खड़ा नजर आया भले ही कितने बड़े बाप का बेटा क्यों न हो।

कांग्रेस के विधायक की दुर्गति
कांग्रेस के पास गिने-चुने ही तो विधायक हैं। पंकज मलिक इस समय शामली जिले की शामली विस सीट के विधायक हैं। यह तय था कि वह चुनाव लड़ेंगे लेकिन जैसे ही सपा व कांग्रेस में गठबंधन की बात चली तो उनकी हालत खराब होने लगी। सपा ने अपने एमएलसी वीरेंद्र सिंह गुर्जर के बेटे मनीष चौहान को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था। पंकज के पिता हरेंद्र मलिक भी चार बार के विधायक व राज्यसभा सांसद रहे हैं। उन्होंने भी ठान ली कि बेटे को टिकट दिलवाकर रहेंगे। हरेंद्र भी चौधरी अजित सिंह के पुराने साथी हैं और रालोद से बेटे के लिए टिकट की बात उन्होंने कर ली। खैर गनीमत रही कि गठबंधन हो गया और शामली सीट कांग्रेस के खाते में चली गई। यह बात और है कि मनीष चौहान बागी के रूप में मैदान में डट गए हैं।

सपा से हुए सब सफा
समाजवादी पार्टी ने भी लंबे समय पहले अपने टिकटों का ऐलान कर दिया था। बाद में शिवपाल व अखिलेश गुटों ने अपने-अपने टिकटों का ऐलान करके खूब रायता फैलाया। मुजफ्फरनगर जिले की खतौली विस सीट पर शिवपाल ने जिलाध्यक्ष श्यामलाल बच्ची सैनी को टिकट दे दिया तो अखिलेश ने पूर्व सांसद स्व. संजय चौहान के बेटे चंदन चौहान को प्रत्याशी बना दिया। खैर सपा का झगड़ा निपटा तो टिकट चंदन के खाते में गया लेकिन खतौली से लगती मीरापुर सीट से सपा प्रत्याशी शाहनवाज राणा की खूब दुर्गति हुई। उन्हें मुलायम ने टिकट दिया था लेकिन अखिलेश को मैसेज दिया गया था कि शाहनवाज की छवि आपराधिक रही है। शाहनवाज को भी आशंका थी कि अखिलेश उनका टिकट काट सकते हैं। तभी कांग्रेस से गठबंधन की बात चली तो उन्हें उम्मीद जगी कि शायद यह सीट कांग्रेस के खाते में जाएगी। ऐसे में उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर ली। दो दिन तक कांग्रेसी रहे लेकिन जब सीट सपा के ही पास रही और सपा ने लियाकत को टिकट दे दिया तो शाहनवाज ने अजित सिंह से जुगाड़ भिड़ाकर खतौली से टिकट ले लिया। यानी तीन दिन में तीन पार्टी बदल लीं। वैसे वह 2007 में बिजनौर सीट से बसपा के विधायक रह चुके हैं। यानी दलबदलू नंबर वन।

ये घर के न घाट के
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन के चलते कुछ पुराने नेताओं की भी खूब किरकिरी हुई। शामली जिले की थानाभवन सीट से कभी विधायक व मंत्री रहे किरणपाल कश्यप का टिकट काट दिया गया तो वह बेचारे राष्ट्रीय लोकदल (सुनील सिंह) का चुनाव चिन्ह ले आए। मुजफ्फरनगर की ही पुरकाजी (सु) सीट से सपा ने पूर्व मंत्री उमाकिरण को टिकट दिया था लेकिन गठबंधन होते ही यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गई और पूर्व मंत्री दीपक कुमार को कांग्रेस ने प्रत्याशी बना दिया। अब सुना है कि उमाकिरण भी बगावत कर रही हैं।

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