हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा-क्यों न हो मथुरा हिंसा की CBI जांच

Edited By ,Updated: 06 Jul, 2016 01:42 PM

the high court asked the government why it is not a cbi inquiry jawaharlal bagh tragedy

मथुरा के जवाहर बाग कांड की सीबीआई या एसआईटी से जांच की मांग में दाखिल जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार के महाधिवक्ता से पूछा कि क्यों न इस पूरे घटनाक्रम की जांच सीबीआई को सौंप दी जाए।

इलाहाबाद: हाल ही में मथुरा के जवाहर बाग में हुए खूनी संघर्ष मामले की सीबीआई जांच के लिए हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं। इन याचिकाओं की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार के महाधिवक्ता से पूछा कि क्यों न इस पूरे घटनाक्रम की जांच सीबीआई को सौंप दी जाए। प्रकरण पर सुनवाई जारी है। कोर्ट अब इन याचिकाओं पर 14 जुलाई को सुनवाई करेगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति विक्रमनाथ तथा न्यायमूर्ति आरएन कक्कड़ की खण्डपीठ ने अश्विनी उपाध्याय व एक अन्य की जनहित याचिका पर यह आदेश दिया। 
 
उपाध्याय ने बहस की कि जवाहरबाग की घटना में सरकार में बैठे लोगों सहित कई अन्य प्रदेशों के नक्सली समूूहों के लिप्त होने के कारण घटना की जांच सीबीआई को सौंपी जाए। साथ ही पीड़ितों या शहीदों को मुआवजा देने में विभेदकारी नीति का त्याग कर स्पष्ट नीति लागू की जाए। उपाध्याय का कहना है कि मास्टर माइंड रामवृक्ष यादव को जिला प्रशासन ने जनवरी 14 में दो दिन के लिए धरना देने की अनुमति दी थी। इसके बाद हजारों की भीड़ जमा हो गयी। राजनैतिक शह के चलते रामवृक्ष के सामने पुलिस बेबस हो गयी। पार्क में भारी मात्रा में असलहे जमा हो गए। पूरा नगर बसा लिया गया। इन गतिविधियों की सूचना खुफिया विभाग लगातार सरकार को भेजता रहा किन्तु राजनैतिक संरक्षण के चलते रामवृक्ष के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हो सकी। हाईकोर्ट के कड़े रूख के चलते उठाये गये कदम में दो पुलिस कर्मियों सहित 27 लोगों की मौत हो गयी। उपाध्याय ने मौत के आंकड़ों पर भी सवाल खड़े किए और कहा कि सीबीआई जांच हाईकोर्ट या न्यायिक आयोग की निगरानी में करायी जाए। राज्य सरकार ने न्यायमूर्ति इम्तियाज मुर्तजा के जांच आयोग को घटना की जांच का जिम्मा सौंपा है।
 
कोर्ट ने जानना चाहा कि पेपर न्यूज के अलावा क्या अन्य कोई साक्ष्य या तथ्य है जिससे कोर्ट जांच का आदेश दे। अधिवक्ता योगेश अग्रवाल ने एसआईटी जांच की मांग की और कहा कि आयोग को कार्यवाही करने का अधिकार नहीं होता है। ऐसे में दोषियों को दंडित करने के लिए एसआईटी जांच जरूरी है। कोर्ट ने महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह से पूछा कि क्यों न घटना की जांच सीबीआई को सौंपी जाए। इस पर उन्होंने याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति की और कहा कि याची भाजपा सदस्य है। याचिका जनहित में न होकर राजनीति प्रेरित याचिका है साथ ही सरकार ने न्यायिक आयोग गठित किया है। उसकी रिपोर्ट का इंतजार किया जाना चाहिए। सीबीआई व आयेाग की जांच से भ्रम उत्पन्न होगा।
 
महाधिवक्ता ने कहा कि केवल काल्पनिक व अखबार की खबरों को लेकर पुलिस पर अविश्वास कर जांच सीबीआई को नहीं सौंपी जानी चाहिए। मीडिया रिपोर्ट को भरोसेमंद नहीं माना जा सकता। याचिका में एक टीवी चैनल के स्टिंग आपरेशन को आधार लिया गया है। याचिका में यह भी सवाल उठाया गया है कि बिना राजनीतिक शह के शहर के बीच पार्क में राकेट लांचर व भारी मात्रा में हथियार जमाकर एक नगर नहीं बसाया जा सकता। सरकार में शामिल लोगों व राजनैतिक संरक्षण के चलते घटना की आयोग से जांच से न्याय नहीं मिल सकेगा। कोर्ट अपनी निगरानी में निष्पक्ष जांच कराए। राज्य सरकार की तरफ से आरोपों को मनगढ़ंत व मीडिया आधारित बताया गया। मीडिया रिपोर्ट को लेकर सरकार की मशीनरी पर अविश्वास नहीं किया जा सकता। समयाभाव के कारण कोर्ट ने सुनवाई स्थगित करते हुए अगली तिथि 14 जुलाई नियत की है।

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