Edited By ,Updated: 20 Feb, 2017 04:32 PM
उत्तर प्रदेश में कई सीटों पर सपा उम्मीदवारों को चुनौती दे रहे बागी प्रत्याशी पार्टी के लिए मुसीबत की वजह बन सकते हैं।
लखनऊ:उत्तर प्रदेश में कई सीटों पर सपा उम्मीदवारों को चुनौती दे रहे बागी प्रत्याशी पार्टी के लिए मुसीबत की वजह बन सकते हैं। यादव परिवार की अंतर्कलह का जमीनी स्तर पर कार्यकर्त्ताआें में अच्छा संदेश नहीं गया है और वे भ्रमित हैं कि किसका समर्थन करें और किसका नहीं। शिवपाल यादव खेमे के करीबी समझे जाने वाले कई नेताआें को टिकट नहीं मिला और उनकी जगह नए चेहरे लिए गए। इससे असंतोष उपजा और यही असंतोष लगभग आधे चुनाव बीत जाने के बाद भी नजर आ रहा है। इस घटनाक्रम ने बागियों को सिर उठाने का मौका दिया जो सपा प्रत्याशियों के लिए मुश्किलें पैदा कर रहे हैं।
सपा और कांग्रेस के बीच एेन चुनाव से पहले गठजोड़ ने टिकटार्थियों के मन में भ्रम गहरा कर दिया। गठजोड़ के समय नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी। सपा ने 403 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को समझौते के तहत 105 सीटें दे दीं लेकिन समझौते के तहत कांग्रेस को गई सीटों पर कई टिकटार्थी बागी उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। अखिलेश यादव कैबिनेट में मंत्री रहे अंबिका चौधरी, नारद राय और विजय मिश्र ने बसपा का दामन थामा तो एक अन्य मंत्री शारदा प्रताप शुक्ल रालोद में शामिल हो गए।
अंबिका और नारद को क्रमश: फेफना (बलिया) और बलिया सदर सीटों से बसपा ने प्रत्याशी बना दिया। गाजीपुर से वर्तमान विधायक मिश्र चुनाव नहीं लड़ रहे हैं लेकिन वहां बसपा प्रत्याशी का समर्थन कर रहे हैं। एक अन्य मंत्री शादाब फातिमा को भी जहूराबाद (गाजीपुर) से टिकट नहीं दिया गया। फातिमा चुनाव नहीं लड़ रही हैं लेकिन उनकी चुप्पी सपा के नए प्रत्याशी की जीत की संभावनाआें को प्रभावित कर सकती है। बागियों से कोई मुश्किल पेश आने की बात से इंकार करते हुए सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने हालांकि कहा कि विरोधी खेमों में भी बेहतर हालात नहीं हैं।