PM मोदी और शाह ने यूपी में बदली है रणनीति

Edited By ,Updated: 28 Feb, 2017 01:21 PM

pm modi and shah changed strategy in up

हार बड़ी कामयाबी अपने साथ नाकामी के बीज भी बो देती है।

लखनऊ:हार बड़ी कामयाबी अपने साथ नाकामी के बीज भी बो देती है। भाजपा अध्यक्ष माक्र्स के इस सिद्धांत में पूरा भरोसा करते हैं। कुछ ऐसे ही रास्ते शाह ने मोदी के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश के राजनीतिक रण के लिए भी बनाए। शाह ने साल 2014 आम चुनावों में पार्टी को मिली ऐतिहासिक कामयाबी के बाद से संभावित नुकसान को खत्म करने के लिए सांगठनिक ढांचे मेंं भारी बदलाव किया। बहरहाल यह सिर्फ एक ही नहीं, बल्कि कई ऐसी बातें रहीं, जो उन्होंने सपा और बसपा को मात देने के लिए पहली बार कीं। भाजपा अध्यक्ष ने चुनाव से पहले पार्टी की प्रदेश इकाई को करीब पच्चीस कैडरों की पहचान करने का निर्देश दियाा, जो पूरे राज्य के 1.50 लाख बूथों पर तैनात किए जा सकें। शाह का यह तरीका पूरी तरह से आर.एस.एस. के संगठन की शैली से प्रेरित था।

प्रशिक्षण के जरिए लोगों को दी गई कैडर में जगह
भाजपा के पदाधिकारियों के अनुसार प्रत्येक बूथ के लिए कैडरों का चयन उस क्षेत्र की जनसांख्यिकी संरचना के आधार पर किया गया। बता दें इसके तहत उस परंपरा को खत्म कर दिया गया, जिसके तहत केवल हिंदुत्व से जुड़े लोगों का ही चयन किया जाता था। ज्यादातर मामलों में एक उद्देश्य के तहत विभिन्न जाति और समुदाय के लोगों को प्रशिक्षण के जरिए कैडर में जगह दी गई। इसके अलावा राज्य स्तर के अधिकारियों ने पार्टी की चुनावी मशीनरी को पूरी तरह जमीनी हकीकत केअनुकूल बनाए रखने के लिए बूथ-स्तर के कार्यकर्त्ताओं, ब्लॉक स्तर से लेकर राज्य के मुख्यालयों की करीब सौ बैठकें आयोजित कीं। ठीक इसी दौरान खुद शाह ने विभिन्न जाति समूहों के साथ बैठक की और उनके भीतर संगठित नेतृत्व को प्रोत्साहित किया।

भाजपा ने गैर-जाटव अनुसूचित जातियों को लुभाने का काम किया
उदाहरण के तौर पर राजभर, नोनिया, निषाद और कुर्मी जातियों को उनकी सत्ता में बड़ी भागीदारी के वादे के साथ पूरी तरह सहयोग किया गया। भाजपा के समर्थन में जो बात दिख रही है, वह यह प्रभाव है कि न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछड़ी जाति से आते हैं बल्कि शाह को भी इस समाज के प्रतिनिधि के रूप में देखा जा रहा है। पूर्व में यादवों और जाटों द्वारा अधिकारों से वंचित कर दिए गए पिछड़ों के राजनीतिक इतिहास को देखते हुए गैर यादव ओ.बी.सी. के बीच नए राजनीतिक सूत्रीकरण की गूंज हुई है। यही कारण था कि केशव प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश इकाई का मुखिया बनाया गया। ओ.बी.सी. सामजिक वर्ग में रास्ता बनाने के बाद बाद भाजपा ने बसपा के मजबूत गढ़ समझे जाने वाले क्षेत्र से गैर-जाटव अनुसूचित जातियों को लुभाने का काम किया।

पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में किया गया बड़ा बदलाव
पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता डा. चंद्रमोहन कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में मायावती की काट के लिए भाजपा ने वाल्मीकि, खटीक और पासी समुदाय के नेताओं को मुख्यधारा में प्रोन्नत किया। पिछले दो या अढ़ाई साल में जहां पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में बड़ा बदलाव किया गया, वहीं राज्य नेतृत्व ने महिलाओं और युवाओं के विकास पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने कहा कि हमने पहले कभी उत्तर प्रदेश में सांगठनिक ढांचे में इस स्तर का बदलाव और इतनी शानदार लामबंदी नहीं देखी। चंद्रमोहन अपनी बात को मजबूती देने के लिए आंकड़ों का हवाला देते हुए कहते हैं कि पिछले छह महीनों में पार्टी ने अपना सर्वकालिक सबसे बड़ा जुटाव किया। इसके तहत 88 युवा कॉन्फ्रैंस, 77 महिला कॉन्फ्रैंस और ओ.बी.सी. वर्ग की कीरब 200 बैठकें आयोजित की गईं। इसके अलावा इसी दौरान चार परिवर्तन यात्राएं भी आयोजित की गईं।
 

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