अन्तर्राष्ट्रीय सूफी सम्मेलन में सन्तों ने दहशतगर्दी को बताया इस्लाम के खिलाफ

Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 Feb, 2018 02:14 PM

organizing the international sufi conference on the dargah

कानपुर से 70 किलो मीटर दूर हजरत जिंदा शाह की दरगाह पर अन्तर्राष्ट्रीय सूफी सम्मेलन का आयोजन किया गया।

कानपुरः कानपुर से 70 किलो मीटर दूर हजरत जिंदा शाह की दरगाह पर अन्तर्राष्ट्रीय सूफी सम्मेलन का आयोजन किया गया। जहां प्रस्ताव पारित हुआ कि जेहाद के नाम पर होने वाली हत्याओं को रोकने के लिए सूफिज्म को बढ़ावा दिया जाए। वहीं इस सम्मेलन में दुनियाभर के सूफी सन्तों ने भारत आकर दहशतगर्दी को इस्लाम के खिलाफ बताया और सभी देशों के अमन पसन्द लोगों को इसके खिलाफ उठ खड़े होने का आहवान किया।
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विश्व को बदलने का काम युवाओं को करना होगा- चिश्ती
अफगनिस्तान से आए सूफी औलिया जरीफ चिश्ती ने कहा कि हुक्मरानों को समझना होगा कि मिसाइल से नहीं मानवीय मूल्यों की रक्षा करके दुनिया जीती जा सकती है। जब एक एशियाई मुल्क का तानाशाह मानवता के लिए खतरा बन जाए तो सूफी सन्तों की भूमिका और भी प्रसांगिक हो जाती है। विश्व को बदलने का काम युवाओं को करना होगा और उनका मार्गदर्शन मदरसों और अध्यात्मिक स्थलों से होना चाहिए, चाहे वे किसी भी मजहब के क्यों न हो।
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सूफी समाज कट्टरता के खिलाफ
जरीफ चिश्ती ने सबसे बड़ी चिंता कट्टरवाद को लेकर जताई। सम्मेलन में सवाल उठा कि क्या तथाकथित धर्मगुरू कट्टरपंथ की ओर चल पड़े हैं और मानवता के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ तथाकथित धर्मगुरू अपनी दुकान चलाने के लिए धर्म की गलत व्याख्या कर रहे हैं और कट्टरता फैला रहे हैं। सूफी समाज कट्टरता के खिलाफ है, भले ही ये इस्लाम के नाम पर हो या किसी और धर्म के नाम पर। सूफी सम्मेलन में एक स्वर से विभिन्न विचारधारा के सूफी समाज को कट्टरता के खिलाफ खड़े होने का आहवान किया गया।
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पत्थरबाजों ने अमनचैन को बर्बाद कर दिया
सूफी सम्मेलन में कश्मीर के हालातों पर भी चिंता जाहिर की गई। सूफी सन्तों ने कहा कि कश्मीर सूफी आन्दोलन से जुड़ा रहा है। यहां के इतिहास में अजमेर के हजरत चिश्ती द्वारा अमन का सन्देेश दिए जाने का जिक्र मिलता था, लेकिन आज यहां पत्थरबाजों ने अमनचैन को बर्बाद कर दिया है। कश्मीरियों को सूफी सन्तों की बात सुननी चाहिए न कि अमन के दुश्मन दहशतगर्दों की।
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अंदर के शैतान को मारना असली जेहाद
अन्तर्राष्टीय सूफी सम्मेलन खुद में भी मुल्कों की सीमाएं, मजहब की दीवारें और भाषाओं के बंधन तोड़ता दिखा। सम्मेलन में सूफियाना अंदाज में धर्म का प्रसार प्रचार करने वाले तमाम धर्म, मुल्क और जुबान के संत और औलियाओं ने शिरकत करके दुनिया को दिखाया कि जेहाद वो नहीं जो कट्टरपंथी सिखाते हैं, अंदर के शैतान को मारना असली जेहाद है और इन्सानियत को कायम करना असली मजहब है।
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इस सम्मेलन का आयोजन उम्मीद की नई किरण  
बता दें कि दक्षिण एशियाई देश या यूं कहिए कि पूरा यूरोप और तमाम पश्चिमी देश इन दिनों दहशतगर्दों या तानाशाही हुक्मरानों से त्रस्त हैं। ऐसे में कानपुर से 70 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक मकनपुर मेले में हजरत जिंदा शाह की दरगाह पर अन्तर्राष्टीय सूफी सम्मेलन का आयोजन उम्मीद की नई किरण लेकर आया है।

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