Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Mar, 2018 07:31 AM
प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या की प्रतिष्ठा गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में दाव पर लगी थी, लेकिन रुझानों में ही समाजवादी पार्टी (सपा) ने दोनों सीटें जीत ली थीं। राजनीति के जानकारों का मानना था कि....
आगरा: प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या की प्रतिष्ठा गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में दाव पर लगी थी, लेकिन रुझानों में ही समाजवादी पार्टी (सपा) ने दोनों सीटें जीत ली थीं। राजनीति के जानकारों का मानना था कि इन दोनों सीटों पर गठबंधन का भविष्य तय होगा। यदि इन दोनों सीटों पर सपा और बसपा गठबंधन जीत हासिल करता है तो उसका सीधा असर वृज में देखने को मिलेगा। खासतौर से दलितों की राजधानी के नाम से मशहूर आगरा में मायावती का रुतबा और अधिक बढ़ जाएगा।
गौरतलब है कि आगरा दलितों की राजधानी है। यहां की जनसंख्या का 35 प्रतिशत हिस्सा दलित वोटर है। वहीं मुस्लिम वोटर भी अच्छी संख्या में है। वर्ष 2012 और उससे पहले 2007 में विधानसभा चुनावों में बसपा को आगरा से 6 विधायक मिले थे। इसके बाद इस चुनाव में बसपा को करारी हार का सामना करना पड़ा था। कमोवेश यही हालात सपा के रहे थे। यहां 1 सीट पर सपा ने जीत हासिल की थी लेकिन राजा महेंद्र अरिदमन सिंह के पार्टी छोड़ने के कारण वह सीट भी भाजपा के खाते में चली गई।
राजनीतिक विशेषज्ञ अनुपम प्रताप सिंह का कहना है कि हाईकास्ट से वोट की राजनीति की सोच रखने वाली पार्टी पिछड़ों और दलितों के वोट के बिना नहीं चल सकती है। उनका मानना है कि अगड़ों की राजनीति में ब्राह्मण वोट बैंक में सेंध लग चुकी है। ऐसे में दलितों और अल्पसंख्यकों को साथ लेने वाली पार्टी को ही विजयश्री मिल सकेगी।