मां को चारधाम यात्रा कराने निकला कलयुग का श्रवण कुमार

Edited By ,Updated: 20 Apr, 2016 02:56 PM

kailash celibate for 20 years is being constantly sit in kanvd pilgrimage mother s philosophy

कलियुगी दुनिया में जहां बच्चे अपने बूढ़े मां-बाप को बोझ समझने लगे हैं वहीं एक ऐसा भी शख्स है जिले आज का श्रवण कुमार कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा।

आगरा: कलियुगी दुनिया में जहां बच्चे अपने बूढ़े मां-बाप को बोझ समझने लगे हैं वहीं एक ऐसा भी शख्स है जिसे आज का श्रवण कुमार कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा। बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के जबलपुर के रहने वाले ब्रह्मचारी कैलाश गिरी की, जो कलियुग के श्रवण कुमार के नाम से जाने जाते हैं। वह अपने अंधी माता को कांवड में बैठाकर अबतक कई तीर्थ स्थलों की यात्रा करा चुके हैं वो भी पैदल। कैलाश गिरी अपनी मां को कांवड में बैठाकर पिछले 20 सालों से 37 हजार किलोमीटर की यात्रा करा चुके हैं। वह मंगलवार को आगरा पहुंच गए। इस दौरान कैलाश गिरी के माता-पिता के प्रति इस प्रेम को देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह गया। ग्रामीणों ने कैलाश गिरी का जोरदार स्वागत किया। कैलाश ने बताया कि वह श्रीकृष्ण की पावन नगरी वृंदावन का दर्शन कराने के बाद वापस अपने गांव जबलपुर लौट जाएंगे।
 
कैसी शुरू हुई यात्रा?  
कैलाश गिरी मध्य प्रदेश के जबलपुर के रहने वाले हैं। इनके पिता छिकोंडि श्रीपाल का बचपन में ही देहांत हो गया था। 25 साल की उम्र में बड़े भाई की भी मौत हो गई। इसके बाद मां कीर्ति देवी की आंखों की रोशनी चेचक की बीमारी के चलते चली गई। कैलाश बचपन से ही ब्रह्मचारी थे। एक बार 1994 में उनकी तबीयत बिगड़ गई थी। बचना मुश्किल था, तो मां ने उनके ठीक होने पर नर्मदा परिक्रमा करने की मन्नत मांगी। बेटा के ठीक होने पर आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण मां परिक्रमा के लिए नहीं जा सकी। इसके बाद कैलाश ने मां की इच्‍छा को पूरा करने के लिए उन्‍हें कांवड़ में तीर्थ यात्रा करवाने का फैसला किया। 
 
इन तीर्थ स्थलों का करा चुके हैं दर्शन
कैलाश अब तक अपने माता पिता को काशी, अयोध्या, इलाहाबाद, चित्रकूट, रामेश्वरम, तिरुपति, जगन्नाथपुरी, गंगासागर, तारापीठ, बैजनाथधाम, जनकपुर, नीमसारांड, बद्रीनाथ, केदारनाथ, ऋषिकेश, हरिद्वार, पुष्कर, द्वारिका, रामेश्वरम, सोमनाथ, जूनागढ़, महाकालेश्वर, मैहर, बांदपुर आदि जगहों की यात्रा करने के बाद आगरा पहुंचे। यहां से वह वृंदावन जाएंगे। कैलाश की इच्छा नासिक त्रयम्बकेश्वर, भीमशंकर, घुसमेश्वर जाने की भी है। लेकिन उनकी मां अब तीर्थ यात्रा नहीं करना चाहती हैं। 
 
अंतिम पड़ाव पर है यात्रा
20 वर्षों पूर्व शुरू हुआ यात्रा का यह सिलसिला अंतिम पड़ाव पर है। कैलाश गिरी ने मीडिय़ा से बताया कि चारों धामों की यात्रा लगभग पूरी हो चुकी है। अब मथुरा वृंदावन जा रहे हैं, इसके बाद माता जहां भी जाने की इच्छा व्यक्त करेंगी उस और रुख कर लेंगे। उन्होंने बताया कि जीवन का अंतिम लक्ष्य मां को प्रभु के हर तीर्थ, हर धाम के दर्शन कराना ही रह गया है। 

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