मदरसे द्वारा जारी किया गया फतवा, इस्लाम में मरणोपरांत शरीर दान करना नाजायज

Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Mar, 2018 11:09 AM

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के एक मुफ्ती ने मुस्लिम समाज में देहदान के खिलाफ फतवा जारी किया है। फतवे में कहा गया है कि मरने के बाद शरीर दान करना इस्लाम में नाजायज और अल्लाह की मर्जी के खिलाफ है। कानपुर के मदरसे द्वारा दिए गए फतवे का देवबंदी उलेमा ने...

कानपुरः उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के एक मुफ्ती ने मुस्लिम समाज में देहदान के खिलाफ फतवा जारी किया है। फतवे में कहा गया है कि मरने के बाद शरीर दान करना इस्लाम में नाजायज और अल्लाह की मर्जी के खिलाफ है। कानपुर के मदरसे द्वारा दिए गए फतवे का देवबंदी उलेमा ने समर्थन कर दिया है। बता दें ये फतवा कानपुर में एक मुस्लिम समाजसेवी द्वारा अपना जिस्म मरणोपरांत मेडिकल रिसर्च के लिए दान करने की घोषणा के बाद जारी किया गया है।

इसलिए जारी किया फतवा 
जानकारी के मुताबिक कानपुर स्थित रामा डेंटल कालेज के महाप्रबंधक डॉ.अरशद मंसूरी ने जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के छात्रों के शोध हेतु अपने शरीर को दान करने की घोषणा की हुई है। इस घोषणा पर एक व्यक्ति ने मदरसा एहसानुल मदारिस के इफ्ता विभाग से पूछा कि क्या मरने के बाद किसी डॉक्टर या तन्जीम को जिस्म दान किया जा सकता है ? इस सवाल पर मदरसे के मुफ्ती हनीफ बरकाती ने फतवा जारी किया कि इन्सानी जिस्म खुदा की अमानत है और मरने के बाद भी ये खुदा का रहता है। 
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देहदान करना नाजायज
उन्होंने कहा कि ये हुक्म शरई है और इसमें किसी को दखल करने का हक नहीं है। फतवे में कहा गयाा कि मरने के बाद यदि कोई मुसलमान अपना जिस्म किसी तन्जीम को अदा करता है तो ये सख्त गुनाह होगा। चूंकि ये फतवा मदरसे के स्तर पर एक मुफ्ती ने जारी किया था, इसलिए इसे उच्च स्तर पर तस्दीक कराने के लिए देवबन्द में पेश किया गया। जहां देवबंदी उलेमा ने इसका समर्थन किया और कहा कि जो चीज हमारी अपनी होती है, हम उसी को दान कर सकते हैं। लेकिन जो चीज हमारे पास किसी की अमानत हो, उसे दान नहीं किया जा सकता। यह शरीर हमारे पास अल्लाह की खास अमानत है। इसलिए इस्लाम की नजर में देहदान करना नाजायज है। 

मृत शरीर को सुपुर्द-ए-खाक किया जाए
उन्होंने कहा कि अल्लाह के बताए तरीके के मुताबिक इज्जत के साथ मुसलमान के मृत शरीर को सुपुर्द-ए-खाक किया जाना चाहिए, लेकिन कानपुर के एक निजी मेडिकल कॉलेज के महाप्रबन्धक डॉ. अरशद मंसूरी इस फतवे के खिलाफ खड़े हो गए हैं। उन्होंने 2006 में कानपुर मेडिकल कॉलेज को अपना जिस्म मरणोपरान्त दान करने के लिए संकल्प पत्र भरा था। उनका कहना है कि वे इस फतवे को नहीं मानते हैं। 
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मुल्ला-मौलवी खुदा की नसीहतों की कर रहे गलत व्याख्या 
हालांकि इसके लिए डॉ.मन्सूरी को फोन पर धमकियां भी मिली हैं। जिसकी लिखित शिकायत उन्होंने पुलिस थाने में भी की है। डॉ.मन्सूरी का कहना है कि मुल्ला मौलवी खुदा की नसीहतों की गलत व्याख्या कर रहे हैं। मेडिकल साईन्स में आंखों के कार्निया की आयु 300 साल बताई गई है यानि इन्सान के जिस्म को बनाने वाला खुदा भी चाहता है कि आंखें या जिस्म के दूसरे अंग किसी को दान दे दिये जाएं। वरना खुदा ए करीम मरने के बाद इन्सानी अंगों को किसी के इस्तेमाल के लायक नहीं बनाता।
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कौम की सोच में बदलाव लाने के लिए जारी लड़ाई
फतवा जारी करने वालों के खिलाफ मोर्चा खोल चुके डॉ.मन्सूरी ने एक सामाजिक संगठन भी खड़ा किया है। जो नेत्र दान और अंगदान के प्रति मुस्लिम समाज को लम्बे अर्से से जागरूक कर रहा है। उनका कहना है कि कौम की सोच में बदलाव लाने तक उनकी लड़ाई जारी रहेगी।

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