Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Feb, 2018 03:36 PM
रंगों से होली तो आपने खूब खेली होगी। दुनिया के अलग-अलग देशों में फल-फूल से लेकर रंगों की होली खेली जाती है, लेकिन धर्म की नगरी काशी में चिता की राख के साथ होली खेली जाती है।
वाराणसीः रंगों से होली तो आपने खूब खेली होगी। दुनिया के अलग-अलग देशों में फल-फूल से लेकर रंगों की होली खेली जाती है, लेकिन धर्म की नगरी काशी में चिता की राख के साथ होली खेली जाती है।
बता दें कि रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन यहां आकर बाबा मशान नाथ की आरती कर चिता से राख की होली शुरू करते हैं। ढोल और डमरू के साथ पूरा शमशान हर-हर महादेव के उद्घोष से गुंजायमान होता हैं। एकादशी के साथ होली की शुरुआत बाबा विश्वनाथ के दरबार से हो जाती है। साधु-संत माता पार्वती को गौना कराकर लौटते हैं। अगले दिन बाबा विश्वनाथ काशी में अपने चहेतों, जिन्हें शिवगण भी कहा जाता है अपने चेलों भूत-प्रेत के साथ होली खेलते हैं।
क्या है मान्यता?
दरअसल एेसी मान्यता है कि भगवान शंकर महाश्मशान में चिता भस्म की होली खेलते हैं। ये सदियों पुरानी प्रथा काशी में चली आ रही है। होली काशी में मसाने की होली के नाम से जानी जाती है। इस होली को खेलने वाले शिवगणों को ऐसा प्रतीत होता है कि वह भगवान शिव के साथ होली खेल रहे हैं। इसलिए काशी के साधु संत और आम जनता भी महाश्मशान में चिता भस्म की होली खेलते हैं।