नोएडा से बलिया तक अंधविश्वास पर विश्‍वास करता है यूपी का राजनीतिक गलियारा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Nov, 2017 02:44 PM

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यूपी में नगर निकाय चुनाव शुरू हो गया है। साथ ही यहां के सीएम भी प्रदेश भर में ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं। सीएम आदित्यन नाथ अब तो एक दर्जन रैलियां कर भी चुके हैं। अब सवाल यह है कि क्यार योगी आदित्यन नाथ नोएडा में रैली करेंगे या वो भी पिछले...

लखनऊ (आशीष पाण्डेय): यूपी में नगर निकाय चुनाव शुरू हो गया है। साथ ही यहां के सीएम भी प्रदेश भर में ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं। सीएम आदित्य नाथ तो अब तक एक दर्जन रैलियां भी कर चुके हैं। अब सवाल यह है कि क्या योगी आदित्य नाथ नोएडा में रैली करेंगे या वो भी पिछले मुख्यमंत्रियों की तरह ही नोएडा नहीं जाने के मिथक पर कायम रहेंगे। आपको बता देें कि नोएडा ही नहीं यूपी के कई जगहों के मिथक से राजनीति गलियारा भरा पड़ा है। सत्ता खोने के डर इन मिथक को कोई भी जन नेता तोड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है। 

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1- नोएडा गए तो कुर्सी भी गई
यूपी की राजनीति में नोएडा की मिथक सब पर भारी है। कहा जाता है कि नोएडा जाने वाले सीएम की कुर्सी चली जाती है। जिसके कारण पिछले 25 वर्षों से कोई भी मुख्यमंत्री नोएडा जाने की जहमत नहीं उठाता है। इसके कई उदाहरण भी हैं। 1989 में एनडी तिवारी गए, उसके बाद उनकी कुर्सी चली गई। इसी वहम की वजह से राजनाथ सिंह ने 2001 में नोएडा फ्लाईओवर का उद्घाटन दिल्ली छोर से किया। 2006 में मुलायम सिंह के मुख्यमंत्री रहते निठारी कांड हुआ। सरकार हिल गई लेकिन मुलायम नोएडा नहीं गए, जिसके लिए आंदोलन तक हो गया। 2011 में मायावती नोएडा गईं तो 2012 में चुनाव हारकर सत्ता से बाहर हो गईंं।

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2- बीजेपी व कांग्रेसियों को पेड़ का डर
लखनऊ स्थित बीजेपी कार्यालय में एक बहुत पुराना पेड़ था जो हाल ही में गिर गया। उसके गिरने पर भाजपाईयों ने जमकर खुशी मनाई। पेड़ की वजह से कार्यालय के ठीक सामने विधानसभा दिखाई नहीं देता था, अब वहम यह था कि विधानसभा दिखाई नहीं देने से पार्टी विधानसभा में पिछड़ी रहती है। ऐसा ही कुछ हाल कांग्रेस कार्यालय में भी सुनने को मिलता है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मानना है कि जो भी पार्टी अध्यक्ष कार्यालय की रंगाई पुताई कराता है उसकी कुर्सी चली जाती है। 1992 में महावीर प्रसाद, 1994 में एनडी तिवारी, 1998 में सलमान खुर्शीद और 2012 में रीता जोशी पुताई के बाद ही हटे थे। दूसरा मिथक कांग्रेस कार्यालय में अशोक के पेड़ से भी जुड़ा है जिसे कार्यकर्ता बड़े होते ही काट देते हैं। इसके पीछे यह कहा जाता है कि ये अशोक का पेड़ अगर बिल्डिंग की छत से ऊंचा हो जाए तो ये बहुत अपशकुन होता है।
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3- बागी बलिया भी नहीं है जुदा
नोएडा व लखनऊ के बाद यूपी का अंतिम जिला बलिया भी इन वहम व अंधविश्वासाेें से अलग नहीं रह सका। यहां का मामला तो और भी अजीब है। यह जुड़ा है स्वतंत्रता सेनानी चित्तू  पाण्डेम की मूर्ति से। जिस चित्तू  पांडे ने जंगे आजादी लड़ी और बलिया को अंग्रेजों से आजाद कराकर वहां जनता की सरकार बना दी थी उन्हीं की मूर्ति अब वहम का शिकार हो चुकी है। वहम यह है कि जो भी नेता चित्तू पाण्डेंय की मूर्ति को माला पहनाएगा उसकी कुर्सी जाएगी। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी ने मूर्ति का अनावरण किया तो मारी गई। राजीव गांधी ने माला पहनाई तो उनकी हत्या कर दी गई। ज्ञानी जैल सिंह ने माला पहनाई तो उन्हें दिल का दौरा पड़ गया। अंधविश्वास की हद यहां तक है कि कहा जाता है जो नेता अपना जुलूस तक अगर चित्तूल पाण्डेय चौराहे से होकर निकलेगा वो कभी जीत ही नहीं सकता है। जिसके कारण कोई भी नेता नामांकन करने के लिए इस चौराहे से होकर नहीं जाता है और ना ही किसी पार्टी का यहां पर कोई कार्यक्रम ही होता है। 

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