Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Mar, 2018 05:59 PM
अयोध्या विवाद भारत के हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव का एक प्रमुख मुद्दा रहा है। इसके साथ ही देश की राजनीति को एक लंबे अरसे से प्रभावित करता रहा है। वहीं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को अंतिम बहस पर सुनवाई की गई। जिसमें सुप्रीम कोर्ट...
फैजाबाद/ अयोध्याः अयोध्या विवाद भारत के हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव का एक प्रमुख मुद्दा रहा है। इसके साथ ही देश की राजनीति को एक लंबे अरसे से प्रभावित करता रहा है। वहीं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को अंतिम बहस पर सुनवाई की गई। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 6 अप्रैल की तारीख तय की है।
राजीव धवन ने पेश की दलील
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से राजीव धवन ने दलील पेश की। धवन ने कहा कि 1994 का संविधान पीठ का फैसला अनुच्छेद 25 के तहत दिए आस्था के अधिकार को कम करता है। इससे पहले अयोध्या मामले में 14 मार्च को दिए अपने अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने तीसरे पक्षों की सभी 32 हस्तक्षेप याचिकाएं खारिज कर दीं और इसके लिए अगली सुनवाई की तारीख 23 मार्च को तय की।
फैसले आने में हो सकती है देरी
रामजन्मभूमि बाबरी भूमि विवाद पर सुनवाई में देरी हो सकती है, क्योंकि टाइटल सूट से पहले सुप्रीम कोर्ट अब पहले इस पहलू पर फैसला करेगा कि अयोध्या मामले की सुनवाई 3 जजों के संविधान पीठ को भेजा जाए या नहीं। कोर्ट पहले यह देखेगा कि क्या संविधान पीठ के 1994 के उस फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत है या नहीं जिसमें कहा गया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंटिगरल पार्ट नहीं है। इसके बाद ही टाइटल सूट पर विचार किया जाएगा।
यथास्थिति बरकरार रखने का दिया निर्देश
1994 में पांच जजों के पीठ ने राम जन्मभूमि में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया था ताकि हिंदू पूजा कर सकें। पीठ ने यह भी कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंटिगरल पार्ट नहीं है।
गौरतलब है कि बीजेपी और विश्वहिंदू परिषद सहित कई हिंदू संगठनों का दावा है कि हिंदुओं के आराध्यदेव राम का जन्म ठीक वहीं हुआ जहां बाबरी मस्जिद थी। उनका दावा है कि बाबरी मस्जिद दरअसल एक मंदिर को तोड़कर बनवाई गई थी और इसी दावे के चलते 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई। लेकिन अब इस विवाद के बीच बौद्ध समुदाय भी उतर आया है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अयोध्या की विवादित भूमि पर बौद्ध समुदाय ने भी अपना हक जताया है।