Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Jan, 2018 11:01 AM
बीते 23 अक्टूबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट और लखनऊ खंडपीठ में की गई सरकारी वकीलों की सैकड़ों नियुक्तियों पर एक बार फिर कोर्ट की तलवार लटक गई है...
इलाहाबाद: बीते 23 अक्टूबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट और लखनऊ खंडपीठ में की गई सरकारी वकीलों की सैकड़ों नियुक्तियों पर एक बार फिर कोर्ट की तलवार लटक गई है।
कोर्ट ने योगी सरकार से पूछा ये सवाल
दरअसल कोर्ट ने सरकारी वकीलों की सूची में धांधली और नाकाबिल वकीलों को अहम पदों पर नियुक्त करने और साथ ही नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस का पालन न करने के आरोपों पर संज्ञान लिया है। हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने योगी सरकार से पूछा है कि नई नियुक्तियों को करने में क्या प्रकिया अपनाई गई है?
2 जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई
कोर्ट ने प्रमुख सचिव विधि को सारी प्रकिया को हलफनामे के जरिए 29 जनवरी तक पेश करने का आदेश दिया है। यह आदेश जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस अब्दुल मोईन की बेंच ने अधिवक्ताओं महेंद्र सिंह पवार और एमएन राय की ओर से अलग-अलग दाखिल 2 जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया है।
7 जुलाई को जारी की नई सूची
सरकारी वकीलों की सूची से न तो बीजेपी संतुष्ट रही है और न ही सूची बनाने में अपनाई गई प्रकिया से अदालत संतुष्ट रही है। सपा काल के सैकड़ों सरकारी वकीलों को हटाते हुए योगी सरकार ने गत 7 जुलाई को नई सूची जारी की, जिसमें बड़े पैमाने पर सपा व बसपा काल के ही सरकारी वकीलों को फिर से अहम पदों पर वापस ले आया गया। ऐसा करने से महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह पर उंगलियां उठी।
सूची में निकली गंभीर खामियां
इस सूची को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई जिस पर उसने गत 21 जुलाई आदेश दिया कि सूची बनाने में गंभीर खामियां है, लिहाजा उसको रिव्यू किया जाए। जिसके बाद सरकार ने महाधिवक्ता की अध्यक्षता में 4 सदस्यीय उच्च स्तरीय कमेटी बना दी। कमेटी की अनुशंसा पर सरकार ने गत 23 अक्टूबर को नई सूची जारी की, जिस पर फिर से गंभीर आरेाप लग रहें है।