जानिए, फूलपुर व गोरखपुर चुनाव में BJP की हार के 6 सबसे बड़े कारण

Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Mar, 2018 09:48 AM

6 biggest reasons for bjp s defeat in phulpur and gorakhpur elections

यूपी उपचुनाव में भाजपा हार गई है। सपा के नागेंद्र सिंह पटेल ने 59,613 वोटों से जीत दर्ज की। नागेन्द्र को 3,42,796 वोट, भाजपा के कौशलेंद्र सिंह पटेल को 2,83,183 वोट मिले। बता दें योगी ने 1 से 10 मार्च तक 5 जनसभाएं कीं, प्रचार में 10 मंत्री, 7 विधायक...

लखनऊ: यूपी उपचुनाव में भाजपा हार गई है। सपा के नागेंद्र सिंह पटेल ने 59,613 वोटों से जीत दर्ज की। नागेन्द्र को 3,42,796 वोट, भाजपा के कौशलेंद्र सिंह पटेल को 2,83,183 वोट मिले। बता दें योगी ने 1 से 10 मार्च तक 5 जनसभाएं कीं, प्रचार में 10 मंत्री, 7 विधायक और 4 सांसदों ने चुनाव प्रचार किया। इतना ही नहीं उप-मुख्यमंत्री केशव मौर्या ने भी डेरा डाल रखा था।

BJP की हार के 6 सबसे बड़े कारण:-

1. फूलपुर में वोटिंग पर्सैंटेज 2014 में 50.19 प्रतिशत था, जबकि इस बार 38 प्रतिशत वोटिंग हुई, मतलब 12.19 प्रतिशत कम। इसका मतलब वोट बंट गया। शुरूआती राऊंड में ही सपा कैंडिडेट आगे हो गया। सपा को 2647 वोट मिले जबकि भाजपा को 2257 वोट। इसके बाद लगातार सपा ने बढ़त बनाए रखी।

2. उपचुनाव में विधानसभावार आंकड़े देखें तो रिजल्ट साफ हो जाएगा। फाफामऊ विधानसभा में 43 प्रतिशत, सोरांव में 45 प्रतिशत, फूलपुर में 46.32 प्रतिशत, शहर उत्तरी में 21.65 प्रतिशत, शहर पश्चिमी में 31 प्रतिशत वोटिंग हुई। इसमें 3 विधानसभा सीटें ग्रामीण क्षेत्र की हैं, जहां ज्यादा वोटिंग हुई। जबकि शहर की 2 सीटों पर कम वोटिंग हुई। भाजपा शहर की पार्टी मानी जाती है। ऐसे में भाजपा को शहर से वोट तो मिले लेकिन गठबंधन को ग्रामीण क्षेत्र से ज्यादा फायदा हुआ।

3. फूलपुर चुनाव में दलित, पटेल और मुस्लिम निर्णायक कास्ट फैक्टर है। दलित 22 प्रतिशत तो मुस्लिम 17 प्रतिशत और पटेल 17 प्रतिशत हैं। ऐसे में इन तीनों के वोट पाने वाला ही विनर हुआ। बी.एस.पी. समर्थित सपा कैंडिडेट को दलित, मुस्लिम के वोट के साथ पटेल वोट भी अच्छी तादाद में मिले, जबकि निर्दलीय कैं डिडेट अतीक अहमद भी मुस्लिम वोटों पर कुछ खास असर नहीं डाल पाए। उन्हें अपने परंपरागत वोट मिले, जिसका फायदा भाजपा को नहीं मिला। वहीं भाजपा के कैंडिडेट पटेल होने के बावजूद पटेल वोटों में ज्यादा सेंध नहीं लगा पाए। इसलिए सपा-बसपा समर्थित कैंडिडेट की जीत हुई। जबकि फूलपुर लोकसभा में ब्राह्मण 7 प्रतिशत, वैश्य 7, कायस्थ 6, यादव 6, ठाकु र 4 और अन्य 15 प्रतिशत हैं।

4. फूलपुर सीट कभी भी भाजपा का गढ़ नहीं रही। 1996 से 2004 तक यह सपा के खाते में रही, जबकि 2009 का चुनाव यहां से बी.एस.पी. जीती थी। 2009 में भी लगभग 38 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। कम वोटिंग का फायदा बी.एस.पी. को हुआ था तब सपा कैंडिडेट अतीक अहमद हार गए थे। 2014 में मोदी लहर में भाजपा ने यह सीट निकाली। 2014 में केशव का जीतना पार्टी की जीत से ज्यादा उनकी सैल्फ  जीत थी क्योंकि उनकी खुद की लोकल लैवल पर पकड़ थी।

5. फूलपुर में भाजपा संगठन सीरियस नहीं दिखाई दिया। भाजपा ने जो कैंडिडेट उतारा उस पर बाहरी होने का ठप्पा लगा। कौशलेन्द्र पटेल वाराणसी के मेयर रह चुके हैं। पटेल होने के नाते उन्हें कैंडिडेट बनाया गया क्योंकि इस लोकसभा क्षेत्र में 17 प्रतिशत पटेल हैं, लेकिन स्थानीय कार्यकर्ता इससे निराश थे। जिससे जनसंपर्क में कमी आई और चुनाव भाजपा हार गई। जब केशव मौर्य जीते थे, तब वह भाजपा अध्यक्ष थे तो उन्होंने पार्टी का पूरा सिस्टम भी इस्तेमाल किया था।

6. आखिरी समय में कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल नंदी ने मुलायम को रावण और मायावती को शूर्पनखा बताया था। इतना ही नहीं, योगी ने सपा-बसपा गठबंधन को सांप-छछुंदर बताया था। इस बयान के बाद दलित और ओ.बी.सी. एक जुट हो गए।

क्यों हुए गोरखपुर-फूलपुर सीट पर चुनाव
गोरखपुर:- यहां से योगी आदित्यनाथ लगातार 5 बार सांसद चुने गए। यूपी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने 21 सितंबर 2017 को सीट छोड़ दी।
फूलपुर:- केशव प्रसाद मौर्य यहां से सांसद थे। उनके यूपी के डिप्टी सीएम बनने के बाद यह सीट खाली हुई।

फूलपुर में किनके बीच हुआ मुकाबला
भाजपा उम्मीदवार- कौशलेंद्र सिंह पटेल वाराणसी के मेयर रह चुके हैं।
सपा-बसपा का उम्मीदवार-नागेंद्र सिंह पटेल सपा के मंडल अध्यक्ष हैं।
निर्दलीय अतीक अहमद-सपा के टिकट पर फूलपुर से सांसद रह चुके हैं। इस बार जेल से चुनाव लड़े।

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