सपा घमासान: आज तय होगा सपा का भविष्य, फैसला नहीं हुआ तो ‘फ्रीज’ हो जाएगी साइकिल

Edited By ,Updated: 16 Jan, 2017 11:26 AM

sp pitched  january 17 will not come to the decision to freeze the cycle

मुलायम और अखिलेश यादव के खेमे ने सपा के चुनाव चिह्न साइकिल पर दावा करने के लिए आज चुनाव आयोग के पास दलीलें पेश की। हालांकि, आयोग ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

नई दिल्ली: मुलायम और अखिलेश यादव के खेमे ने सपा के चुनाव चिह्न साइकिल पर दावा करने के लिए शनिवार को चुनाव आयोग के पास दलीलें पेश की। हालांकि, आयोग ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। आयोग ने दोनों पक्षों से कहा कि फैसला जल्द किया जाएगा क्योंकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया 17 जनवरी को शुरू होगी। अगर चुनाव आयोग आज यानि 17 जनवरी को फैसला नहीं सुना पाता है तो चुनाव चिन्ह अपने आप फ्रीज हो जाएगा। फिर दोनों दलों को अलग-अलग चुनाव चिन्ह दे दिया जाएगा।

बहुमत मुख्यमंत्री के साथ
अखिलेश यादव की आेर से पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन और कपिल सिब्बल ने आयोग के समक्ष दलील दी कि सांसदों, विधायकों, विधान परिषद सदस्यों और पार्टी प्रतिनिधियों का बहुमत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ है। करीब साढ़े चार घंटे चली दलील में प्रतिद्वंद्वी चचेरे भाई मुलायम सिंह यादव और रामगोपाल मौजूद थे। मुलायम के साथ उनके भाई शिवपाल भी थे जबकि रामगोपाल राज्यसभा सदस्य नरेश अग्रवाल के साथ थे। 

चुनाव चिन्ह के लिए आस्वस्त अखिलेश खेमा
अतीत के उदाहरणों का जिक्र करते हुए अखिलेश खेमा ने दलील दी कि चूंकि संख्या बल मुख्यमंत्री के पक्ष में है इसलिए साइकिल का चिह्न उन्हें ही मिलना चाहिए। इसके लिए 1968 का चुनाव चिह्न आदेश और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधान (धारा 29 ए सहित) का उदाहरण दिया गया।

मुलायम पक्ष ने किया ये दावा
वहीं, मुलायम खेमे का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व सॉलीसीटर जनरल मोहन परासरन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि चूंकि पार्टी में कोई सीधी टूट नहीं है जैसे कि सपा (मुलायम) या सपा (अखिलेश), इसलिए आयोग के पास किसी एक समूह को चिह्न आवंटित करने के अधिकार का अभाव है। मुलायम खेमे ने यह दलील भी दी कि एक जनवरी को अखिलेश के विश्वस्त रामगोपाल यादव द्वारा बुलाए गए सम्मेलन में मुलायम को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाते हुए चूंकि कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया गया और पार्टी एकजुट है, इसलिए चुनाव चिह्न (सुरक्षित रखना और आवंटित करना) आदेश, 1968 का पैरा 15 इस मामले में लागू नहीं होता। 

अखिलेश खेमे ने किया विरोध
इस दावे का अखिलेश खेमे ने विरोध किया। उसने कहा कि आयोग को संबोधित एक पत्र में मुलायम के विश्वस्त अमर सिंह ने ‘टूट कर अलग हुए गुट’ शब्दों का इस्तेमाल किया है और दोनों पक्षों ने आयोग के समक्ष चिह्न को लेकर दावा किया है, जो एक विवाद का संकेत देता है।  

दोनों पक्षों ने चुनाव चिह्न को लेकर किया दावा 
बाद में धवन ने बताया, ‘‘दोनों पक्षों ने चुनाव चिह्न को लेकर दावा किया है। किसी ने भी इस चिह्न को जत किए जाने की दलील नहीं दी है।’’ एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि चूंकि किसी ने भी चिह्न जब्त करने की दलील नहीं दी है इसलिए आयोग के पास उपलध विकल्पों मंे यह भी शामिल है। धवन ने उच्चतम न्यायालय के एक आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि आयोग सिर्फ चिह्न के मुद्दे पर फैसला कर सकता है और पार्टी अध्यक्ष के विषय पर दीवानी अदालत सहित अन्य उपलब्ध तंत्र द्वारा फैसला किया जा सकता है।वहीं, 17 जनवरी के पहले मामले में फैसला कर पाने में अक्षम रहने पर आयोग एक अस्थायी आदेश जारी कर सकता है क्योंकि उ.प्र. में नामांकन पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया उसी दिन शुरू हो जाएगी। 

किसलिए मचा घमासान?
गौरतलब है कि पार्टी में पिछले हफ्ते टूट के बाद मुलायम और उनके बेटे अखिलेश के नेतृत्व वाले गुटों ने आयोग का रूख कर पार्टी और चुनाव चिह्न साइकिल पर दावा किया था। दोनों पक्षों ने अपने-अपने दावे के समर्थन में कुछ दस्तावेज भी सौंपे हैं। आयोग ने उन्हें विधायकों और पदाधिकारियों के हस्ताक्षर वाला हलफनामा देने के लिए सोमवार तक का वक्त दिया था। इसमें पार्टी के नाम और चिह्न पर नियंत्रण का दावा किया जाना था। राज्य में प्रथम चरण का चुनाव 11 फरवरी को है। 

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