अब भी है लोगों को प्रियंका का असली इंतजार!

Edited By ,Updated: 19 Feb, 2017 01:06 PM

priyanka is still waiting for real people

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के शुरूआती दौर में होने वाले सपा-कांग्रेस गठबंधन पर सबकी नजर थी। लगता तो ऐसा था कि अगर गठबंधन हो गया तो....

लखनऊ:उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के शुरूआती दौर में होने वाले सपा-कांग्रेस गठबंधन पर सबकी नजर थी। लगता तो ऐसा था कि अगर गठबंधन हो गया तो चुनाव परिणाम अप्रत्याशित होंगे, बकौल सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और यू.पी. के सी.एम. अखिलेश यादव 403 सीटों वाली यू.पी. विधान सभा में 300 सीट जीत लेने के अरमानों से लबरेज थे लेकिन अब भी गठबंधन को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। दरअसल, उम्मीद थी कि अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जोड़ी उत्तर प्रदेश में धमाल कर देगी लेकिन मतदान के तीसरे चरण में भी डिम्पल और प्रियंका दोनों के साथ आने का इंतजार लोगों को अब भी करना पड़ रहा है।

अमेठी से आगे नहीं बढ़ रही हैं प्रियंका वाड्रा
हालांकि, आगरा में उनके साथ जया बच्चन ने मंच शेयर किया लेकिन मतदाताओं को अपनी ओर खींचने में विफल होने के बाद उन्होंने अपना किनारा कर लिया और दोबारा कहीं भी डिम्पल के साथ मंच पर दिखीं नहीं, यहां तक कि लखनऊ में दो सीटें कैंट और सरोजिनी नगर पर यादव परिवार के सदस्य प्रत्याशियों के लिए चुनाव प्रचार में मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव और डिम्पल यादव ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, जया बच्चन यहां भी गायब रहीं। चुनाव में अब तक के प्रचार अभियान में कांग्रेसी-सपाई नेता और कार्यकर्त्ता दिखाई तो दे रहे हैं लेकिन मतदाताओं को अपनी ओर खींचने में सबसे ज्यादा उम्मीद प्रियंका गांधी को लेकर है जो रायबरेली, सुल्तानपुर से आगे नहीं दिख रही हैं। अभी तक हर चुनाव चाहे वह लोकसभा का हो या विधानसभा का, प्रियंका कांग्रेस के लिए कम से कम रायबरेली और अमेठी में चुनाव प्रचार ही नहीं चुनाव की कमान तक संभालती रही हैं, इस  बार इसमें भी कोताही हो रही है। शीला दीक्षित, गुलाम नबी आजाद और राज बब्बर, प्रियंका का समूचे यू.पी. में चुनाव प्रचार में उतरने का दावा करते रहे हैं। हालांकि अब गुलाम नबी आजाद प्रियंका को ‘जनरल’ बताकर यह कहने लगे हैं कि प्रियंका गांधी हमारी सेना की जनरल हैं। जनरल केवल नीतियां बनाता है, सीमा पर नहीं जाता।

गठबंधन की गांठ जितनी मजबूती से बंधनी चाहिए थी वह बंधी नहीं
दरअसल गठबंधन की गांठ जितनी मजबूती से बंधनी चाहिए थी वह बंधी नहीं। इसके कई एपिसोड बने जिसमें कभी हां कभी न क्रमवार चलता रहा। अंतत: राहुल-अखिलेश की लखनऊ में सांझा प्रैस कांफ्रैंस में पूरी सहमति से गठबंधन की घोषणा हुई जिसमें सीटों के बंटवारे की गांठ बहुत मजबूती से बांधे जाने की बात कही गई लेकिन जैसे-जैसे चुनाव अभियान आगे बढ़ता गया वैसे वैसे मजबूत गांठ दिखी नहीं। सिर्फ रायबरेली और अमेठी में ही नहीं, राजधानी यानी लखनऊ क्षेत्र में यह गांठ हल्की पड़ गई और सपा के एक मंत्री और कांग्रेस के एक उम्मीदवार लखनऊ मध्य क्षेत्र सीट पर एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में डटे हैं।

सपा को प्रचार सामग्री पर ‘साथ’ पसंद नहीं आ रहा
प्रदेश के बाकी क्षेत्रों में गठबंधन की गांठ ढीली पड़ी है, जिससे भीतरघात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। बहरहाल, गांठ पर यह चोट प्रचार सामग्री पर भी लगी है। सपा को प्रचार सामग्री पर ‘साथ’ पसंद नहीं आ रहा है। ‘यू.पी. को यह साथ पसंद’ वाले नेताओं के पोस्टर, बैनर और स्टिकर गिनती के बिक रहे हैं तो वहीं अखिलेश के स्टिकर पोस्टर और ‘यू.पी. को अखिलेश पसंद है’, ‘बच्चा बच्चा है अखिलेश’, ‘काम बोलता है’ के स्लोगन वाले स्टिकरों की ही बिक्री हो रही है।  

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