हिंदी दिवस: किताबों के प्रेमियों को समर्पित

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Sep, 2017 01:16 PM

hindi day captive book lovers

अंग्रेजी पाठकों की तुलना में हिंदी पाठकों की बिरादरी भले बेहद कम दिखती हो लेकिन वह अपने काम को पूरी तन्मयता से कर रहे हैं, और वह काम है किसी कोने में बैठकर अच्छे साहित्य का सानिध्य पाना।

नई दिल्ली: अंग्रेजी पाठकों की तुलना में हिंदी पाठकों की बिरादरी भले बेहद कम दिखती हो लेकिन वह अपने काम को पूरी तन्मयता से कर रहे हैं, और वह काम है किसी कोने में बैठकर अच्छे साहित्य का सानिध्य पाना। किताब की दुकानों में अब हिंदी किसी अंधेरे कोने तक सीमित हो गई लगती है, बाकी की दुकान अंग्रेजी बेस्टसेलर किताबों से भरी पड़ी रहती है, ऐसा लगता है जैसे हर कोई अंग्रेजी क्लासिक, अंग्रेजी कॉमिक्स और अंग्रेजी पत्रिकाएं ही पढ़ रहा है। लेकिन यह तस्वीर का सिर्फ एक पहलू भर है। इस तस्वीर का दूसरा पहलू हिंदी किताबों की गरिमामयी उपस्थिति दर्ज कराता है। 
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आज हिंदी दिवस है। यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हिंदी साहित्य आज भी समसामयिक और प्रासंगिक बना हुआ है फिर चाहे इसे लेकर नकारात्मक नजरिया रखने वाले कुछ भी कहें। प्रीति मिश्रा को ही लें जो आईआईटी दिल्ली से भाषा-विज्ञान में पीएचडी कर रही हैं। स्कूल के दिनों से वे हिंदी कहानियां पढऩे का शौक रखती हैं और एक दोस्त ने जब से हिंदी साहित्य से उनका परिचय करवाया है तब से यह उनका जुनून बन गया है। 

प्रीति कहती हैं, ‘‘तब मुझे अहसास हुआ कि हिंदी साहित्य जगत कितना खूबसूरत और विस्तृत है। मुझे अच्छे साहित्य से मतलब है, भाषा चाहे जो हो।’’ वह निर्मल वर्मा, कुंवर नारायण, केदारनाथ सिंह के अलावा गुलजार और सआदत हसन मंटों की भी बड़ी प्रशंसक हैं। लेखक कुणाल सिंह मानते हैं कि युवा पाठकों में से अधिकांश अंग्रेजी पढ़ते हैं, जो गलत नहीं है लेकिन यह एक फैशन सा बन गया है। 
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कॉर्पोरेट कम्यूनिकेशन अधिकारी रितिका प्रधान मानसिक शांति के लिए हिंदी किताबें पढ़ती हैं। उन्होंने ङ्क्षहदी पढऩे को लेकर लोगों की मानसिकता से संबंधित एक खराब अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया कि मेट्रो में वह ङ्क्षहदी की किताब पढ़ रही थीं तभी उनके पास मौजूद एक लड़की ने पूछा, ‘‘आप हिंदी क्यों पढ़ रही हैं? क्या आपको यह समझ आती है।?’’

यहां तक कि उस लड़की ने उन्हें अंग्रेजी समझने के लिए शुरुआत में चेतन भगत की हॉफ गर्लफ्रेंड पढऩे का सुझाव दिया। प्रधान ने कहा कि फिलहाल वह दोजखनामा का हिंदी रूपांतरण पढ़ रही हैं और सोने से पहले हिंदी जरूर पढ़ती हैं क्योंकि इससे उन्हें सुकून मिलता है। सत्तर वर्ष पुराने प्रकाशन घर राजकमल प्रकाशन के संपादकीय निदेशक सत्यानंद निरूपम ने बताया कि बीते कुछ वर्षों में ङ्क्षहदी पाठकों की संख्या बढ़ी है।  

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