लोक परम्परा संस्कृति में राही का सराहनीय योगदान, उत्तराखंड पहुंची पत्नी ने कहा...

Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Jan, 2018 04:04 PM

chandra singh rahis wife reaches uttrakhand for a function

जुन्यली पार को सुणलो, हिलिमा चांदी को बटन, तुमते हमरी याद गाड़ो गुलबंद जैसे गीतों पर तो राहीजी के आम प्रशंसक भी भावुक हो जाते थे, फिर राही सुधाजी  का साथ तो जीवन रिश्ते  का था।

देहरादून/ब्यूरो। चंद्र सिंह राही के गीत सभागार में गूंज रहे थे और पहली पंक्ति पर बैठीं सुधा राही सुबक रही थीं। जुन्यली पार को सुणलो, हिलिमा चांदी को बटन, तुमते हमरी याद  गाड़ो गुलबंद जैसे गीतों पर तो राहीजी के आम प्रशंसक भी भावुक हो जाते थे, फिर राही सुधाजी  का साथ तो जीवन रिश्ते  का था। राही जी की जिंदगी  में वो आई तो बस घर में सुबह से शाम तक उन्होंने गीत ही सुने, हुड़का डोर थाली की मधुर ध्वनियों को सुना। रातों के जागर सुने, मेले कौथिक के बासंती, ऋतु गीत सुने, पवाड़े सुने।  

 

राहीजी अब इस संसार में नहीं, मगर वह अपने लोकगीतों के साथ है। दिल्ली के हैविटेड सेंटर में  राहीजी के बड़े बेटे ने उनकी में जब गीतों भरी रजनी का आयोजन किया तो मां सुधा को उस समय की यादों में बहना स्वाभाविक था। आंखों से आंसू बह रहे थे  और मंच से स्वर गूंज रहे थे, हिलमा चांदी को बटन। सुधा कहने लगी, इस घर में आई तो बस राहीजी के गीतों में ही यह सारा समय निकल गया। मैं उनसे कहती कभी तो आराम किया करो। हर समय ये गीत ये हुड़का। वो कहां मानते थे।  सुबह का सूरज देर में आता उससे पहले उनका गाना शुरू हो जाता।  हमेशा अपने थैले में न जाने क्या क्या लिखा हुए कागज डायरी समेटे रहते।

 

उनमें ही उनके गीत लिखे रहते, नई नई चीजों को जुटाते थे। उनके स्वर्गवास के बाद  एक-एक पल उनकी ही याद में जी रही हूं। उनके गीतों को सुनकर मन को तसल्ली मिलती है। लगता नहीं वो हमसे कहीं दूर चले गए हैं। उनका कहना था कि संगीत का घर पर ऐसा माहौल था कि राहीजी के सारे गीत मुझे भी याद हो गए थे। कई लोग घर पर आते  घर पर संगीत की महफिल जमती। पर घर पर ज्यादा कहां टिकते थे। आज यहां कार्यक्रम कल वहां कार्यक्रम। घर पर आते तो कहते मुझे आज फलां जगह कार्यक्रम है। मैं उनसे  कहती फिर आप घर आते ही क्यों हो। क्या मिलता है तुम्हें गाकर बजाकर। थोड़ा चैन भी तो लिया करो। 

 

वह हंस कर कहते थे, अभी तुझे मेरी कद्र का पता नहीं। बस पति भर हूं तेरा। मेरे जाने के बाद, इस घर में मेरी याद में इतने लोग आएंगे कि चाय बनाते बनाते थक जाएगी।  आज देख रही हूं कि राहीजी के गीतों के लिए कितने लोग उमड़े हैं, कितने झूम रहे हैं। नए-नए बच्चे भी उनके गीतों को गा रहे हैं।  बेटे नाती-नतिन सबने  मिलकर राही घराना बना दिया है। मेरी आंख के ये आंसू खुशी के आंसू हैं।  पहाड़ों का ये लकसंगीत हमेशा  रहेगा। इनमें बहुत सुंदरता है।  चैत की चैत्वाली, हिलमा,  जुन्यली रात, अपणी थाती मा तू, सात समोंदर पार चजाणु ब्वे जैसे कई गीत उत्तराखंड के  लोकजीवन में सुने जाते हैं। उनके जागर गीतों पर पहाड़ झूमा है। उनके पहाड़ी साजों पर मंत्रमुग्ध हुआ है। 

 

सुधा राही उस आयोजन में अपने साथ एक डायरी लेकर आई थीं। उसमें राहीजी के गीत लिखे थे, लेकिन इस डायरी को खोलने की उन्हें जरूरत नहीं पड़ी। हर गीत उन्हें याद था।  वह साथ साथ गुनगुना भी रही थीं।  कभी रोती, कभी खुश होती। राहीजी के साथ गीत संगीत का उनका जो जीवन था, और अब केवल जिस तरह स्मृतियां हैं। उसे महसूस किया जा सकता है। 

 

कहीं किसी गीत पर कहती , इसमें हुड़का बजाओ। कहीं शाबाशी भी।  उत्तराखंड की लोक परम्परा  संस्कृति में राहीजी का जिस तरह योगदान है उनकी याद में उनके बेटे वीरेंद्र नेगी ने उनके गीतों के साथ इंडिया हेवीटेड सेंटर में एक यादगार कार्यक्रम किया। इसी कड़ी में 10 जनवरी को उनकी दूसरी पुण्यतिथि पर उनके दूसरे बेटे राकेश भारद्वाज का राहीजी के गीतों पर एक आयोजन है।  राहीजी के परिजन अब राही घराना नाम से उनके गीत संगीत को धरोहर के रूप में सुरक्षित रखने की कोशिश कर रहा है और उन्हें खुशी है कि पहाड़ राहीजी को बार-बार याद कर रहा है।

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