पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगले बचाने और मंत्रियों के वेतन भत्ते बढ़ाने के लिए विधेयक

Edited By ,Updated: 30 Aug, 2016 11:49 AM

supreme court chief minister bungalow

उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवंटित सरकारी बंगले खाली कराने के उच्चतम न्यायालय के आदेश से बचने का रास्ता निकालने के लिए विधानसभा में...

लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवंटित सरकारी बंगले खाली कराने के उच्चतम न्यायालय के आदेश से बचने का रास्ता निकालने के लिए विधानसभा में एक संशोधन विधेयक पेश किया, जिसमें मुख्यमंत्री समेत सभी मंत्रियों के वेतन भत्तों में बढोत्तरी का भी प्रस्ताव है। विधानसभा में उक्त आशय से प्रस्तुत उत्तर प्रदेश मंत्री विधेयक 2016 में पूर्व मुख्यमंत्रियों को उनके अनुरोध पर जीवनपर्यन्त राज्य सम्पत्ति विभाग के तहत नियमानुसार मासिक किराये पर कोई सरकारी आवास आवंटित किए जाने का प्रावधान कर दिया गया है। मूल अधिनियम ‘उत्तर प्रदेश मंत्री 1981’ में यह प्रावधान नहीं था।

इस संशोधन विधेयक के जरिए मुख्यमंत्री, मंत्रियों, राज्य मंत्री और राज्य मंत्री का वेतन प्रतिमाह 12 हजार रूपए से बढ़ाकर 40 हजार रूपए तथा उपमंत्री का वेतन 10 हजार से बढ़ाकर 35 हजार रूपए कर दिए जाने का प्रावधान है। मुख्यमंत्री एवं मंत्रियों को मिलने वाले अन्य भत्तों में भी बढ़ोत्तरी की व्यवस्था की गई है। उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद राज्य सम्पत्ति विभाग द्वारा न्यासों, पत्रकारों एवं कतिपय अन्य श्रेणी के लोगों को हुए भवन आवंटन की वैधता को लेकर उठे सवालों के बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने एेसे आवंटनों को विधिक रूप देेने के उद्देश्य से एक अलग और विस्तृत अधिनियम बनाने के लिए भी विधानसभा में एक विधेयक पेश किया है। 

विधानसभा में राज्य सम्पत्ति विभाग के नियंत्रणाधीन भवनों का आवंटन, 2016 शीर्षक से प्रस्तुत विधेयक में पूर्व मुख्यमंत्रियों, राज्य सरकार के कर्मचारियों और अधिकारियों और अखिल भारतीय सेवा एवं न्यायिक सेवा के अधिकारियों, पत्रकारों समेत उन सभी अधिकारियों, संघों, न्यासों और राजनीतिक दलों को कतिपय शर्तो के साथ भवन देने की व्यवस्था है, जिन्हें राज्य सम्पत्ति विभाग द्वारा कार्यकारी नियमों और अधिनियमों के उपबंधों के तहत अब तक भवन आवंटित किये जाते रहे हैं। अब तक राज्य सम्पत्ति विभाग के भवनों के आवंटन के लिए कोई अलग कानून नहीं था और आज का विधेयक उक्त आवंटनों को विनियमित करने के उद्देश्य से अलग अधिनियम बनाने के उद्देश्य से को पूरा करने के लिए पेश किया गया है।

विधेयक के प्रावधानों के अनुसार सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों को भवनों का आवंटन उनके लखनऊ में तैनाती की अवधि के लिए किया जाएगा और सेवा निवृत्ति अथवा स्थानान्तरण की तिथि से 30 दिनों के भीतर भवन खाली करना पड़ेगा।  न्यासों को छोडकर अन्य श्रेणी के आवेदकों को भवन का आवंटन 2 वर्ष के लिए किया जाएगा और उसके बाद राज्य सरकार की तरफ से उन आवंटनों को एक-एक साल करके आगे बढ़ाया जा सकेगा। जहां तक भवनों के किराये का सवाल है तो न्यासों और सोसाइटियों के मामले में यह बाजार दर पर लागू होगा, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री, सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों और पत्रकारों आदि को अब तक लागू दर पर ही रखा जाएगा।

मालूम हो कि उच्चतम न्यायालय ने लोक प्रहरी नामक संस्था की याचिका पर गत एक अगस्त को अपने एक फैसले में पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन बंगले आबंटित करने को एक प्रशासनिक हुक्म मानते हुए इस व्यवस्था को खारिज कर दिया था और सरकार को दो महीने के अंदर एेसे बंगले खाली करने के आदेश दिये थे। राज्य सम्पत्ति विभाग ने उच्चतम न्यायालय के उसी फैसले को आधार बनाते हुए पत्रकारों और न्यासों समेत छह से अधिक आवंटियों को भवन खाली करने की नोटिस जारी कर दी थी।

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