Edited By ,Updated: 13 Jan, 2016 01:43 PM
अपनी नफासत के लिए पूरी दुनिया में मशहूर लखनवी चिकनकारी पर अब ‘ड्रैगन’ का साया मंडरा रहा है। लखनऊ के चिकन उत्पादों के मुकाबले...
लखनऊ: अपनी नफासत के लिए पूरी दुनिया में मशहूर लखनवी चिकनकारी पर अब ‘ड्रैगन’ का साया मंडरा रहा है। लखनऊ के चिकन उत्पादों के मुकाबले करीब 30 प्रतिशत सस्ते चीनी चिकन उत्पाद इस उद्योग के असंगठित क्षेत्र से जुड़े करीब 5 लाख कारीगरों की रोजीरोटी के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। उद्योग मण्डल ‘एसोचैम’ द्वारा चिकनकारी उद्योग को लेकर कराए गए ताजा अध्ययन में कहा गया है कि कुशल कारीगरों की कमी और जागरूकता के अभाव का बुरा असर लखनऊ के चिकनकारी उद्योग पर पड़ रहा है।
हालात ये हैं कि दस्तकारी द्वारा उत्पादित कुल चिकन के केवल 5 प्रतिशत हिस्से के कपड़े ही निर्यात किए जा रहे हैं, बाकी को घरेलू बाजार में ही किसी तरह खपाया जा रहा है। एसोचैम के आर्थिक अनुसंधान ब्यूरो द्वारा कराए गए इस अध्ययन के मुताबिक ‘‘मशीन से बनाए जाने वाले चीनी चिकन के कपड़े लखनवी चिकन उद्योग को चुनौती दे रहे हैं।
चीनी चिकन के मुकाबले दस्तकारों द्वारा बनाए जाने वाले चिकन के कपड़ों की सुपुर्दगी में अक्सर वक्त की पाबंदी नहीं हो पाती, क्योंकि ज्यादातर कारीगर लखनऊ के आसपास के गांवों में रहते हैं।इसके अलावा चीनी चिकन लखनवी चिकन के मुकाबले करीब 30 प्रतिशत सस्ता भी होता है।’’
अध्ययन के मुताबिक लखनऊ का चिकनकारी उद्योग काफी बिखरा हुआ है और बाजार तथा निर्यात के रख के बारे में पर्याप्त जानकारी ना होने, सुअवसरों और कीमतों की जानकारी की कमी, कच्चे माल की कमी और फैक्ट्री में निर्मित उत्पादों से मिल रही प्रतिस्पर्धा से मुकाबले के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता की कमी इस बिखराव के मुख्य कारण हैं।