Edited By ,Updated: 25 Nov, 2015 02:39 PM
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मंगलवार को एसिड अटैक के पीड़ितों के लिए क्षतिपूर्ति की वकालत करते हुए कहा है कि सरकार को केवल...
लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मंगलवार को एसिड अटैक के पीड़ितों के लिए क्षतिपूर्ति की वकालत करते हुए कहा है कि सरकार को केवल प्राथमिकी दर्ज कर मुकदमा चलाने तक ही नही सोचना चाहिए बल्कि उससे आगे भी सोचना होगा खासतौर पर उन पीड़ितों के बारे में जिनका जीवन अभिशाप बन चुका है। कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी के तहत स्पष्ट प्रावधान हैं जिसके तहत पीड़ित को मुकदमे के दौरान भी मुआवजा दिलाया जा सकता है।
जानकारी के अनुसार जस्टिस सुधीर कुमार सक्सेना ने एक क्रिमिनल अपील की सुनवाई के दौरान एसिड अटैक के अभियुक्त को 10 साल की सजा में से 5 साल पहले ही जेल में काट चुकने के कारण उसे जमानत तो दे दी। यह भी कहा कि अभी अपील तय होने में वर्षों लगेंगे, लेकिन कोर्ट ने पीड़ित के दर्द को समझते हुए उसे भी तीन लाख रुपए मुआवजा दिए जाने के आदेश दिए हैं। हसीन अब्बास पर तेजाब फेंकने के मामले में मो. कलीम के खिलाफ केस चला, जिसमें उसे 10 साल की सजा सुनाई गई।
जिसके खिलाफ कलीम ने 2012 में हाईकोर्ट में अपील की तथा जमानत अर्जी की सुनवाई कर कोर्ट ने उसे जमानत दे दी, लेकिन कोर्ट ने पाया कि पीड़िता को पूरा मुआवजा नहीं मिला, जबकि सीआरपीसी की धारा 357 के तहत विचारणऔर हाईकोर्ट को पूरा अधिकार है कि वह पीड़िता को मुआवजा दिला सके। यह मुआवजा विचारण और अपील के दौरान भी दिया जा सकता है।
आपको बता दें कि राज्य सरकार ने सुप्रीम केार्ट के एक फैसले के अनुपालन मे सूबे में 2014 में विक्टिम कंपेनसेशन स्कीम बनाई है। इस स्कीम के तहत स्टेट विधिक सेवा प्राविधकरण और जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों द्वारा मुआवजों का निर्धारण होता है। कोर्ट ने पाया कि इस स्कीम को अच्छे से लागू करने के लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों में फुल टाइम सेक्रेटरी होना चाहिए, जो कि मौजूदा समय में नहीं है। ऐसे में कोर्ट ने सरकार से स्कीम की सफलता के लिए जरूरी निर्णय लेने को कहा है।